हमीद के दोहे
देश हमारा एक है, जिसका भारत नाम।
प्यार मुहब्बत से रहो,नफरत का क्या काम।
डर ही तो है आपका, कुछ का कारोबार।
दुनिया यारो हो गयी , एक बड़ा बाज़ार।
गाली देते फिर रहे , सब को बारम्बार।
मुझको उनका लग रहा ,नफरत कारोबार।
किरदारों पर ठीक से,करिये ज़रा विचार।
अच्छों को ही दीजिये,वोटों का उपहार।
कागजात उस केस के , उठा ले गये चोर।
कलतक जिसकी जाँच का,बड़ा मचा था शोर।
— हमीद कानपुरी