ग़ज़ल
अरे ये ज़माने के मंज़र तो देखो
सियासत में जलते हुए घर तो देखो
जो इंसां को इंसां समझते नहीं हैं
हरिक बात पर उनके तेवर तो देखो
अमीरों ज़रा अपने महलों से निकलो
गरीबों की बस्ती में रहकर तो देखो
नहीं होता आसान, राहों पे चलना
मुसाफ़िर ज़रा धूप सहकर तो देखो
बनो एक दीपक उजालों की ख़ातिर
हवा से कभी तुम भी लड़कर तो देखो
लड़े सरहदों पे वो किस किस तरह से
कभी शूरवीरों के जौहर तो देखो
ये *सरिता* है यारों मुहब्बत की नदिया
कभी इसके तल में उतरकर तो देखो