गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अरे ये ज़माने के मंज़र तो देखो
सियासत में जलते हुए घर तो देखो

जो इंसां को इंसां समझते नहीं हैं
हरिक बात पर उनके तेवर तो देखो

अमीरों ज़रा अपने महलों से निकलो
गरीबों की बस्ती में रहकर तो देखो

नहीं होता आसान, राहों पे चलना
मुसाफ़िर ज़रा धूप सहकर तो देखो

बनो एक दीपक उजालों की ख़ातिर
हवा से कभी तुम भी लड़कर तो देखो

लड़े सरहदों पे वो किस किस तरह से
कभी शूरवीरों के जौहर तो देखो

ये *सरिता* है यारों मुहब्बत की नदिया
कभी इसके तल में उतरकर तो देखो

हर्षा मूलचंदानी

पति - श्री कन्‍हैया मूलचंदानी स्‍थायी पता - भोपाल, मध्‍यप्रदेश मातृभाषा - सिन्‍धी लेखन - सिन्‍धी, हिन्‍दी, गुजराती नौकरी - मध्‍यप्रदेश शासन, विधि मंत्रालय, भोपाल लेखन विधा - तुकांत, अतुकांत, मुक्‍तक, नज्‍़म, गज़ल, दोहा, गीत सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , राष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित , राष्ट्रीय स्‍तर पर मंचो पर काव्यपाठ,सेमिनार में पेपर पढना एवं साहित्यिक कार्यशालाओं में उपस्थिति , मंच संचालन , आकाशवाणी भोपाल से प्रसारित साप्‍ताहिक सिन्‍धी कार्यक्रम में कम्‍पीयर