कविता
चंद पंक्तियाँ राष्ट्र हित में, उन समस्त दंगाइयों को एक संदेश जो राष्ट्र में दंगे करवाते हैं,चाहे वह महिला हों या पुरुष ।
हर वादे पूरे करते हैं, बातों के बिल्कुल सच्चे हैं ।
मूर्ख समझते हैं हमको,अफसोस अभी तक बच्चे हैं ।।
झूठ अभी तक फितरत में, वो राष्ट्रद्रोह कर जाते हैं ।
जो राष्ट्र हितैषी होते हैं, वो सरहद पे मर जाते हैं ।।
वह राष्ट्र हितैषी कभी नहीं,केवल द्रोही कहलाते हैं ।
जो चंद सियासी लालच बस, घर में दंगे करवाते हैं ।।
लंम्बे भाषण जो देते हैं, और राष्ट्र धर्म बतलाते हैं ।
वह राणा की औलाद नहीं,अपनी औकात बतलाते हैं ।।
वह नहीं लक्ष्मीबाई हैं, जो कल दंगे करवाई हैं ।
नाहीं प्रताप की पुत्री हैं, जो घास की रोटी खाई हैं ।।
चंद कौडियो की भूखी, नादान अभी तक बच्ची हैं ।
परिपक्व नहीं हो पाई हैं, वह अक्ल कि पूरी कच्ची हैं ।।
क्रांति पांडेय “दीपक्रांति”