ग़ज़ल
कभी ना लौटा वो गुज़रे हुए लम्हे की तरह
मैं था जिसके लिए मंज़िल के रास्ते की तरह
जो दिल में है उसे ज़ुबान पे न लाया करो
तन्हा रह जाओगे वरना तुम आइने की तरह
मुश्किलें तो बहुत सी आईं मेरी राह में भी
पर मैं टूटा नहीं तुम्हारे हौसले की तरह
उतर के देखो मेरे सीने के समंदर में
छुपा रखी हैं यादें तेरी ख़ज़ाने की तरह
ज़रा सी देर में बहा के ले गया सब-कुछ
इश्क़ आया था ज़िंदगी में ज़लज़ले की तरह
— भरत मल्होत्रा