दगैल : प्राध्यापकों की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा
आज श्री रूप सिंह चंदेल का उपन्यास “दगैल” पढ़कर समाप्त किया I इसके पात्र कई दिनों तक मेरी नींद में भी आते- जाते और मन को आंदोलित करते रहे I इस उपन्यास में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत किया गया है I नारी मुक्ति और नारी स्वतंत्रता की वकालत करनेवाले लेखक व पत्रकार किस तरह नारी देह से खेलते हैं और उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर देते हैं, यही इस उपन्यास की मूल आधार भूमि है I उपन्यासकार ने उपन्यास में लेखकों- पत्रकारों के दोहरे चरित्र, पाखंड, मर्दवादी सोच का पोस्टमार्टम किया है I उपन्यासकार ने दिल्ली और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की लंपट कथा के बहाने भारत के सभी विश्वविद्यालयों के चारित्रिक पतन को रेखांकित किया है I यह तो अब खुला सच है कि भारत के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्तियाँ भाई- भतीजावाद और गुरु – चेलावाद के आधार पर ही होती हैं, बिना इसका सहारा लिए अपनी प्रतिभा के बल पर कोई व्यक्ति प्राध्यापक नहीं बन सकता है I यदि प्राध्यापक बनना है तो किसी प्रभावशाली गुरु के चरण राज को अपने माथे से लगाना ही पड़ेगा I जिस व्यक्ति का स्वाभिमान चरण वंदना की इजाजत नहीं देता उसे विश्वविद्यालय की प्राध्यापकी का मोह छोड़ ही देना चाहिए I कुछ प्रतिभाएं तो विश्वविद्यालयों की सड़कों पर चप्पलें घिसती रह जाती हैं लेकिन उनका चयन नहीं होता है I अब जहाँ पर नियुक्ति का आधार ही गुरु का झोला ढोना रह गया हो उस देश में शिक्षा के क्षेत्र में नवोन्मेष की कल्पना करना ही बेमानी है I इसलिए विश्वविद्यालय जड़ता, कूपमंडूकता, पुरातनपंथ, पिष्ट पेषण से बुरी तरह ग्रस्त हैं I भारत के विश्वविद्यालय कारखाना बन गए हैं जहाँ पर टनों मानव संसाधन रूपी कचरा तैयार होता है लेकिन समाज के लिए उनका कोई उपयोग नहीं है I विश्वविद्यालयों में ताजी हवा का प्रवेश वर्जित है I कोई नया विचार नहीं, कोई नई प्रेरणा नहीं, कोई नई दिशा नहीं I हजारों की संख्या में हर साल शोध प्रबंध लिखे जा रहे हैं लेकिन उनमें कोई नयापन नहीं, विषय विविधता नहीं – पिष्ट पेषण का पुनः पिष्ट पेषण किया जा रहा है I जब नियुक्ति का आधार ही गुरु- चेलावाद और पैरवी हो वहाँ मेधावी लोग कैसे आएँगे I उपन्यासकार इस तथ्य को रेखांकित करने में सफल रहा है कि मर्दों की पशुता और जंगलीपन के बीच महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, शोध के नाम पर छात्राओं का देह शोषण किया जाता है और साहित्य का नारी स्वातंत्र्य एक धोखा मात्र है I विक्रांत जैसा लंपट प्राध्यापक और लेखक, प्रेम प्रकाश जैसा पत्रकार, सुशील जैसा छद्म क्रन्तिकारी शालिनी, स्मृति, राधा गुप्ता जैसी भोलीभाली महिलाओं का शिकार करते व इनके जीवन में विष घोलते हुए हमारे समाज में कैसे सम्मानित जीवन जी रहे हैं, इस उपन्यास की यही आधार भूमि है I सरल – सहज भाषा – शैली में उपन्यासकार ने विश्वविद्यालय की राजनीति, उठापटक, जोड़तोड़, बेहयाई, पत्रकार- नेता गठजोड़ और भ्रष्टाचार का जीवंत चित्रण किया है I
उपन्यास : दगैल
उपन्यासकार : श्री रूपसिंह चंदेल
प्रकाशक : भावना प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ : 232
मूल्य : 500/-
वर्ष : 2017