मैं लिखता हूँ बिकता नहीं,
चट्टान के आगे रूकता नहीं।
जो करते वायदे झूठे हैं,
मेरा शब्द उन पर थूकता नहीं।
जमीर बेचकर अकड़ा जो,
जली रस्सी सा झूकता नहीं।
जो अमन की लो जगाता है,
दिया उसका कभी बुझता नहीं।
नींव जिस की कच्ची है,
गिर जाता जो पुकता नहीं।
दिल पक्का चोटें खा खा कर,
वो गम गहरे से दुखता नहीं।
वो नज़र पारखी क्या करे,
पहचान जिस के मुक्ता नहीं।
वो देश तरक्की क्या करे,
कर्ज जिस का चुकता नहीं।
वो नीरस मन तजोरी सा,
जिस में सूद उगता नहीं।
शिव कैसा मन कवि का
मन भाव जिस के उठता नहीं।
— शिव सन्याल