ग़ज़ल
इश्क ज्वार में सदा आदमी लुटा गया
बेवफा सनम मुझे ख्वाब में जगा गया |
प्यार की कसम सनम ने ली’ थी कई दफा
क्या कहूँ अभी, मुझे छोड़ कर चला गया |
स्वार्थ में निमग्न है, आदमी निडर सदा
यह उथल-पुथल धरा पर, यही डरा गया |
पेड़ हीन यह धरा खौफनाक जान लो
काटना सही नहीं, जलजला दिखा गया |
जिंदगी में मौज मस्ती व दिल्लगी की थी
प्रेयसी की मौत ने नींद से जगा गया |
दर्द से कराह गहरी निकल रही सदा
मर्म बीच में विरह शूल जो चुभा गया |
बिन प्रिया तमाम दुनिया तनहा क्यों हो गई
वक्त तेरे गाल ‘ काली’ चपत लगा गया |
कालीपद प्रसाद’