बांसुरी : एक जोड़ी आँखें
कवि स्वर्गीय सुरेंद्र कुमार चौधरी की काव्य रचना “बांसुरी ” एक जोड़ी आँखे जीवन के सभी रंगो को समाहित किये हुए है ,जैसे श्री कृष्ण १६ कलाओं में निपुण थे उसी तरह काव्य रचना :बांसुरी ” १६ कलाओं का मिश्रण है ।काव्य रचना में शव्दों का जैसा चयन है वो उनकी गहराई को प्रदर्शित कर रहा है
कवि अपनी रचना से “अपना परिचय” देते है :-
” मै गीत रचा करता हूँ , उस वीराने की
जिसमे मैने ठानी, केशर उपजाने की
लाली में कोई कमी नहीं रहने पाये
शोणित से अपने उसे भिगोने आया हूँ ”
कवि की कविता मेरा परिचय ही दर्शाता है कवि अपने कविता के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कैसी इच्छाशक्ति मानव को चाहिए उसे दर्शाता है।
आज के युवाओं जिनके लिये गुरु की अहमियत अब ज्यादा नहीं रही कवि अपने माध्यम से बताना चाह रहे हैं
“गुरु कृपा और” गुरु चरण में शीश झुका लें ” से संदेश देना चाह रहे है की गुरु का चरण ही सत्यमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है ,जब भी मनुष्य का मन भटकता है तब गुरु का ध्यान ही उस भटकाव से दूर करता है :
“वासना सबको भरमाती है भरी जवानी में
पढ़ी है हमने लेकिन यह किसी कहानी में
गृहस्थ में हो तन ,पर मन से लूँ वैरागी बन
कमल का पत्ता ज्योँ रहता अनभिगा पानी में”
मन्त्र तू यह अपना लें
चरण में शीश झुका ले ”
“झांक रहा था चाँद ” काव्य रचना इस देश के नेता जो प्रजा तंत्र को खोखला कर रहे है ,जिससे पूरा देश अस्त व्यस्त महसूस कर रहा है उसको अपनी भाषा से प्रस्तुत कर रहे है ।
“जो ज्यादा ईमान ख़रीदे
शासन उनके हाथ रहेगा
कृपाचार्य थे मौन
भीष्म का व्यवहार द्रोण सा ही था ”
वतर्मान व्यवस्था पर कुठारघात करते हुए कवि अपने रचना ” नव कुरु क्षेत्र “में कहना चाह रहे है प्रत्येक दिन अभिमन्युं घिर कर मारा जा रहा है ।
“आहुति बनकर भष्म हो रहा , जाने कितनी मांग सिंदूर
मौन है जनमानस के पथ निर्देशक विके हुए निर्वय स्वार्थ के वणिक सुर ”
जीवन की अस्त व्यस्त स्थिति को दर्शाता कविता :”वक्त “जब सोंचा तो पाया रह गये खाली हाथ
“उम्र भर काम से रुखसत कब दी
और फिर वक्त ने मोहलत कब दी
जिंदगी का हिसाब कब करते
जिंदगी ने हमें फुर्सत कब दी ”
प्रजातंत्र की चुनौती समर से समाज के अंदर जो विभाजन हो रहा है कवि अपने शब्दों से बता रहे है
“बहुत दिखा चुके अब तक,हमें झूठे सपने
तुम्हारी चाल से दुश्मन बने जो थे अपने
कृपा होगी हमें हमारे हाल पर छोडो
कुर्सियां बाँट लो खुद ही ,मेरे समाज को मत तोड़ो
गली मोहल्लों में न फैलाऔ
जहर दलों के दलदल में “।
कवि के रास रंग का भाव उनकी कविता “आते ही आषाढ़ ” में लिखा है
“मगन मोर विन आस अधूरी
करे प्रणय मनुहार मयूर
आमंत्रण समीप आने का
पाकर भी क्यों देर करे “।
सावन के आगमन का स्वागत नव यौवन किस तरह करते है,कवि अपनी रचना” ये सावन के यान”में लिखते हैं
“हलकी सी छुअन पवन की लो
इन दुवों को शरमा डाला
चंचल चपला ने मेघराज को
लुक छिप के भरमा डाला ”
कवि अपने लेखनी के रूप का परिवर्तन अपनी रचना” रुदन है वरदान ” में लिखते है कैसे आज के मानव के आँख का पानी ख़त्म हो रहा है
“किन्तु मै अभागा
ग्रस्त ऐसे वात्याचक्र में
न आंसू झर पाते है
न हंसी आती है ”
अब के समय में जिस तरह का दर्द मानव को मिलता है “यह दर्द ” में कवि अपनी भावना को रखते है
“इसलिए शायद दुःख भी
दुलारा सा लगता है
दर्द कभी कभी
बड़ा प्यारा सा लगता है ”
आज के परिपेक्ष में जब बुजुर्ग अलग रहने को विवश है उसमे कवि लिखते है “ये सपने ”
“आँखों को भरमाते
सतरंगे सपने
कम से कम मेरे तो
हुए नहीं अपने .
देश की कारगिल चोटी को बचाने गए हमारे वीर जवान को समर्पित कवि की रचना
“फौलादी वीरों कठिन विजय
अभियान नहीं रुकने देना
दुश्मन के सीनों को गोलों
की दाहों में फुकने देना ”
सुन्दर कृति ताजमहल को कवि की नज़र में कारीगरों की कारीगिरी को समर्पित करते हुए बादशाह के जुल्म सह कर जो खूबसूरत निर्माण किया है उस पर लिख रहे है
“संगमरमर से बने तेरे लिवासों की नहीं
यह लेप है उन कर्मकारों का गलित मज़्ज़ा का
जिनको बिकना पड़ा था शाह के आतंक से
बस चंद मुट्ठी अन्न पर
रहना पड़ा था कार्यरत आठो प्रहर ”
ताजमहल के ऊपर इस तरह की रचना कवि के गरीवों के प्रति उनके विचार व्यक्त कर रहा है।
शव्दो के जाल से कवि ने एक उत्कृष्ट काव्य रचना की है ,काश उनके जीवित रहते उनकी पुस्तक प्रकाशित हो पाती उन्होंने “एक जोड़ी आँखों “से अपने शब्दों
” यत्र से सहेजती है
थके हुये डैनो की
हर टूटी पंख
जिसमे बसी है आज भी
मेरी वही “एक जोड़ी आँखें “
— पुष्कर कुमार सिन्हा
भागलपुर