जीना सिखा रही है जिंदगी….
मुझे ये कहाँ ले जा रही है जिंदगी
धीरे-धीरे जीना सिखा रही है जिंदगी
नफरत हो रही है और मोहब्बत भी
सही गलत में भेद बता रही है जिंदगी
महफिल भी मिलती है और तन्हाई भी
किस्मत का आईना दिखा रही है ज़िन्दगी
एक वो अजनबी है और एक मैं हूँ
दिलों को जोड़ना सिखा रही है जिन्दगी
जिस-जिस को मैंने अपना माना था
अब भ्रम को मिटा रही है ये जिन्दगी
मैने तो सब जिन्दगी को सौंप दिया है
अब खामखाँ ही सता रही है जिन्दगी
✍️ – रमाकान्त पटेल