देरी से मिला अधूरा न्याय
अन्ततः निर्भया के चार बलात्कारियों-हत्यारों को फाँसी पर लटका दिया गया। यह न्याय देर से तो मिला ही अधूरा भी है, क्योंकि पाँचवाँ अपराधी तो कुदरती मौत मर गया और छठा अपराधी मोहम्मद अफरोज सिलाई मशीन और हजारों रुपयों का इनाम पाकर कहीं मौज कर रहा है।
कहावत है कि देरी से न्याय देना, न्याय को नकारना है। परन्तु यह हमारी न्याय व्यवस्था की बिडम्बना है कि यहाँ लगभग सभी मामलों में न्याय मिलने में बहुत देरी हो जाती है और कई बार वह निरर्थक हो जाता है। इसलिए अपनी न्याय व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने की महती आवश्यकता है।
हमारी न्याय प्रणाली में दो मुख्य बीमारियाँ हैं। तारीख पर तारीख देना पहली और सबसे बड़ी बीमारी है। वकील अपने स्वार्थ के कारण कभी नहीं चाहते कि मामले का फैसला जल्दी हो जाये, इसलिए वे तारीख पर तारीख लेते रहते हैं और ‘माननीय’ जज आँख बन्द करके जरा-जरा से बहानों पर अगली तारीख दे देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हर न्यायालय में लाखों मुकदमों का अम्बार एकत्र हो जाता है, जिसके बोझ के नीचे दबकर न्याय दम तोड़ देता है। इसीकारण बहुत से लोग मामलों को न्यायालय तक ले जाने में भी हिचकते हैं, क्योंकि उनको न्याय मिलने की कोई आशा नहीं होती।
इस प्रवृत्ति पर सरलता से रोक लगायी जा सकती है। ऐसा नियम बनाया जा सकता है कि किसी भी मामले के दोनों पक्षों को अधिकतम दो बार तारीख लेने का अधिकार हो। इससे अधिक बार किसी को तारीख न दी जाये और मामले की सुनवाई उपलब्ध सबूतों के अनुसार करके फैसला दे दिया जाये। यदि किसी मामले में दो मुख्य पक्षों से इतर कोई अन्य पक्ष हो, तो उसे तारीख लेने का अधिकार न हो। यदि यह नियम बना दिया जाये, तो हर वकील को अपने मुकदमे की पूरी तैयारी करके आना होगा और न्याय जल्दी तथा प्रभावी मिलेगा।
हमारी न्याय व्यवस्था में दूसरी कमी यह है कि यहाँ अपील पर अपील करने का निर्बाध अधिकार मिला हुआ है। बहुत से लोग इस अधिकार का दुरुपयोग करते हैं और न केवल न्यायालय का कीमती समय नष्ट करते हैं, बल्कि दूसरे पक्ष को उचित न्याय से वंचित भी करते हैं। इसलिए इस प्रवृत्ति को भी रोका जाना चाहिए। यह नियम बनाना चाहिए कि एक मामले में प्रारम्भिक सुनवाई करने वाले न्यायालय के फैसले को ही उससे ठीक ऊपर के न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, उससे अधिक ऊपर के न्यायालयों में नहीं। सबसे अच्छा तो यह हो कि फैसला देते समय न्यायाधीश ही यह स्पष्ट कर दे कि इस फैसले की अपील नहीं की जा सकती।
यदि ये दो सुधार न्याय व्यवस्था में कर दिये जायें, तो देश में शीघ्र न्याय मिलने का स्वप्न साकार हो सकता है। इसके अलावा भारत में न्यायाधीशों के चयन के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा भी होनी चाहिए, जिससे अभ्यर्थी अपनी योग्यता के बल पर न्यायाधीश बन सकें, भाई-भतीजावाद के कारण नहीं। काॅलेजियम सिस्टम भारतीय न्याय व्यवस्था का कोढ़ है। इसे तत्काल समाप्त कर देना चाहिए।
— डाॅ विजय कुमार सिंघल