जनता कर्फ्यू
ऐसा मंजर न मैंने कभी देखा
हवाओं को सिर्फ साए साए करते देखा
निकला था घर से कुछ दवाई लेने
आलम जो देखा सोसायटी से बाहर अाके
दुकानें थी बन्द छोटी बड़ी सब
डॉक्टर का दवाखाना खुला था
खुली थी औषधि की दुकानें
न परचूनी की दुकान खुली थी
न ठेला लगा था चाय वाला
सड़कें थी सुनी
जेठ की दोपहरी जैसी
बसे थी खाली
ऑटो थे खाली
ये बंदी न किसी दल ने बुलाई
न घोषित की सरकार ने
यह फैसला था
खुद जनता का
इसे आप दहशत समझिए मौत की
या आई हुई आपदा से निपटने के लिए जंग की
— ब्रजेश