ग़ज़ल
लगे सूरत शिकारी
तो कर सीरत से यारी
बचे कैसे जहां से
जवां बिरहा की मारी
फ़क़त मुफ़लिस को लूटें
ये मंदिर के पुजारी
जो तेरा ग़म न समझे
उसी पर अश्कबारी
हमारे काम आई
हमारी ख़ाक़सारी
— बलजीत सिंह बेनाम
लगे सूरत शिकारी
तो कर सीरत से यारी
बचे कैसे जहां से
जवां बिरहा की मारी
फ़क़त मुफ़लिस को लूटें
ये मंदिर के पुजारी
जो तेरा ग़म न समझे
उसी पर अश्कबारी
हमारे काम आई
हमारी ख़ाक़सारी
— बलजीत सिंह बेनाम