कविता

ईश्वर का संकेत

आ चले अपने अंदर की ओर
बैठो कुछ क्षण मूंद आंखों को
कुछ अंदर के भी दृश्य देख लो
कहां तुम्हें था समय अभी तक अपने अंदर खो जाने का
मिला समय है तुमको मत इसे बर्बाद करो
ईश्वर ने आकर स्वयं
तुमको यह सुंदर मौका उपहार दिया
कुछ समझो क्या वो चाहता है करना इंगित
जरा ध्यान करो उत ओर
सोचो समझो अपने अंदर जा कर
क्या मैं हूं कर रहा
ईश्वर ने मुझे यहां क्यों भेजा
मैं हूं कौन
अपने मूल स्वभाव छोड़ कर लगा हुआ बस
एक दूसरे का गला काट अंधाधुंध कमाने में
क्या ठीक क्या गलत है बिना इसका विचार किए
अभी समय है नहीं अभी भी कुछ बिगड़ा
मुड़ जा फिर अपने मूल स्वभाव पर
नहीं कुछ रह जाएगा रह जाएगा एक पश्चाताप
कर मिले समय का उपयोग
झांक जरा अपने अंतर्मन में

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020