चरित्र –
1- भानू प्रताप बेटा- मल्टीनेशनल कंपनी में डायरेक्टर
2-अमृता- भानू प्रताप की पत्नी (ब्यूटी पार्लर की मालकिन)
3-चाहत और चिंटू- दो बच्चे, चाहत – उम्र आठ वर्ष, चिंटू – उम्र बारह वर्ष
4- कमला- भानू प्रताप की माँ (उम्र 70 वर्ष) पांच वर्ष पूर्व पति की मृत्यु हो चुकी है। कमला के पैरों में दर्द रहता है। वह अपने आप चल नहीं सकती है। सहारे की आवश्यकता पड़ती है।
5- शांति – घर की सेविका ( जो माँ की केयर टेकर भी है।)
स्थान – दिल्ली की एक बड़ी सोसायटी में दो मंजिला पांच बैड रूम वाला बड़ा मकान। तीन कमरे नीचे और दो कमरे ऊपर हैं। नीचे के कमरों में भानू प्रताप और और बच्चे रहते हैं। ऊपर के कमरे में माँ और उनकी एक केयर टेकर शांति रहती है। सुबह के आठ बजे हैं।
पर्दा उठते ही नीचे घर में चहल पहल दिखाई देती है। सभी को अपने अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी है।
अमृता- अरे, शांति तुम कहां हो? जल्दी नीचे आओ। बच्चों का टिफिन लगाना है।
शांति – दीदी अभी आती हूँ। माँ जी को थोड़ा बाथरुम तक ले जा रही हूँ।
अमृता- अच्छा जल्दी नीचे आ जाओ।
भानू- अरे,अमृता क्यों परेशान होती हो। शांति अभी आ रही है।
बच्चे – माँ हमें देर हो रही है स्कूल की बस आने वाली है। जल्दी टिफिन दो।
अमृता- यह शांति भी न……….
भानू- लाओ मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं।
अमृता- भानू , तुम तो रहने ही दो।
(अमृता, शांति को बुरा-भला कहते हुए बच्चों के टिफिन में सैंडविच रखती है। बच्चे स्कूल चले जाते हैं। अमृता भी भानू के साथ माँ को लेकर तू-तू मैं-मैं करते हुए तैयार होकर अपने पार्लर चली जाती है।
अंत मैं भानू भी नीचे से ही माँ मैं जा रहा हूँ कहकर अपने आफिस चला जाता है। हर दिन परिवार की यही दिनचर्या होती है। अब घर में सिर्फ शांति और माँ रह जाते हैं। घर में एक मात्र शांति ही थी। जिसको कमला अपना सुख-दुख कह सकती थी। घर के सभी सदस्य अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे।
(शांति घर का दरवाजा बंद करके ऊपर कमला के पास जाकर कहती है।)
शांति – माता जी, मैं आपके लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूँ। फिर मुझे झाड़ू-पोंछा भी करना है।
कमला- शांति नाश्ता रहने दे।आज कुछ भी खाने को मन नहीं कर रहा है। दो साल से जब से मेरे पैर खराब हुए हैं। मैं यहां अकेली पड़ी रहती हूँ। कोई मुझे ऊपर आकर देखता भी नहीं है। मैं अपने बच्चों से दो बातें करने के लिए तरस जाती हूँ। एक तू ही है जिससे सब कुछ बोलकर अपना मन हल्का कर लेती हूँ। किसी को मेरी कोई परवाह नहीं है। मैं चाहे जीयूँ या मरूँ।
शांति- अरे माँ जी, काहे को मन छोटा करती हो? आपका बेटा बहू बहुत व्यस्त रहते हैं इसलिए ऊपर आपके पास नहीं आ पाते हैं। बच्चों को भी स्कूल की पढ़ाई का बहुत काम होता है। मैं तो आपके साथ ही रहती हूँ। आप मुझे बोलो आपको क्या होना। मैं कुछ सब कर देगी।
कमला- शांति तू तो बहुत अच्छी है। तू न होती तो……. सोचकर ही जी घबरा जाता है। मैं तो तेरे सहारे ही चल फिर पाती हूँ। बेटा तू मुझे व्हील चेयर में बैठाकर बालकनी में बैठा दे। वहां लोगों को आते जाते देकर मेरा मन हल्का हो जाता है।
शांति – जी माँ जी, अभी आई।
( शांति कमला को बालकनी में बैठा देती है। कमला सामने के पार्क में घूमते हुए लोगों को देखती है। उसका मन पार्क में जाने के लिए करता है। पर शांति अकेले ऊपर से नीचे नहीं उतार सकती थी।)
कमला- शांति ओ शांति! सुन आज लगभग आठ माह हो गए। मैं नीचे नहीं गई। तेरे सिवा किसी से बात तक नहीं की। तू तो बहुत अच्छी है। आज मुझे नीचे ले चलेगी। माँ जी, मैं अकेले व्हील चेयर में आपको उठाकर सीढ़ियों से नीचे नहीं ले जा सकती हूँ। किसी और व्यक्ति की सहायता लेनी होगी।
कमला- अच्छा तू रुक। मैं बालकनी से किसी को आवाज देती हूँ। तभी कमला को एक सब्जीवाला ठेले पर सब्जी लेकर जाते हुए दिखता है। कमला जोर जोर से आवाज देती है। “अरे, भैया जरा ऊपर आना। सब्जी लेना है।”
नीचे से सब्जी वाला चिल्लाता है “माता जी आप बता दो क्या-क्या लेना है। मैं ऊपर आकर दे दूँगा।”
कमला- अरे भैया, तू पहले ऊपर तो आ।
सब्जीवाला-(ऊपर आकर) हाँ बताओ माता जी क्या लेना है।
कमला- बेटा, आज आठ माह हो गए। मैं नीचे नहीं उतरी। बेटा तू शांति के साथ मिलकर मुझे नीचे उतार दे। मुझे पार्क जाकर बच्चों तथा बड़ों से बात करना है। बदले में मैं तुझे अपनी यह सोने अंगुठी दूंगी।
सब्जीवाला- माता जी मुझे कुछ नहीं चाहिए। चलिए, आपको नीचे ले चलते हैं।
शांति और सब्जीवाला माता जी को नीचे ले आते हैं। कमला तो नीचे आकर खुशी से पागल ही हो जाती है। शांति माँ जी की व्हील चेयर को पार्क में ले जाती है। कमला पार्क में हर बच्चे से बात करती है। ऐसा लग रहा था मानो कमला के पंख लग गए हो। वह खुले आकाश में बिन सहारे के उड़ना चाहती है। हम उम्र के लोगों से बात करके उसे नव जीवन का अहसास हो रहा था। वह अपने पैरों के दर्द को भी भूल चुकी थी। सब्जी वाला माता जी का आशीर्वाद लेकर चला गया था।
शांति – माँ जी अब सांझ होने वाली है। अमृत मेम साहब और भानू बाबू के घर आने का वक्त हो रहा है। अब हमें किसी की सहायता से आपको ऊपर ले जाना चाहिए। नहीं तो मेम साहब हमारे ऊपर बहुत नाराज होंगी।
( शांति चारों तरफ किसी व्यक्ति को देखने लगती है।)
कमला- अरे शांति तू डर मत, आज आठ माह बाद तूने मुझे खुला आकाश और अपनो का साथ दिया है। मैं अब ऊपर नहीं रहूँगी। सिर्फ मेरे पैर ही तो खराब हैं दिमाग नहीं। मैंने अपने ही घर में बहुत सहन कर लिया। अब और नहीं कर सकती हूं।
शांति – अच्छा चलिए, आपको नीचे ड्राइंगरूम में ले चलती हूँ।
कमला- हाँ चल, मुझे तो आज खुशी के कारण बहुत भूख भी लगी है। तू कुछ चाय नाश्ता बना देना।
( कमला नीचे ड्राइंगरूम में चाय नाश्ता करते हुए टेलीविजन देख रही थी)
कमला-मेरे बच्चों ने तो मुझे जीते जी ही मार दिया था ना टेलीविजन ना ढ़ंग का खाना पीना। ऊपर एक कमरे में कैद करके रख दिया था। मैं अपने ही घर में कैद होकर रह गई थी।
( तभी अचानक घंटी बजती है। शांति डरते-डरते दरवाजा खोलती है। परिवार के चारों सदस्यों का घर में प्रवेश होता है। सभी कमला को नीचे देखकर कर अचंभित हो जाते हैं।)
चाहत व चिंटू- दोनों बच्चे दौड़कर दादी के पास जाते हैं। अरे दादी! आज तो आप नीचे आ गईं। आपके पैर ठीक हो गए। अब आप हमारे साथ नीचे रहोगी। हम लोग एक साथ खाना खायेंगे। मम्मी हमको ऊपर आपके पास जाने नहीं देती हैं।
(दोनों बच्चे दादी को नीचे देखकर बहुत खुश थे)
अमृता- अरे शांति, अम्मा जी को तो समझ नहीं है। तुमको तो समझ है। तुम्हें अम्मा जी को नीचे नहीं लाना चाहिए था कहीं गिर जाती तो क्या होता ?
भानू प्रताप – हाँ शांति, अमृता ठीक कह रही है। मैं बाहर से चौकीदार को बुलाता हूँ। तुम दोनों मिलकर अम्मा को ऊपर ले जाओ।
कमला – बेटा, अभी तक मैं नासमझ थी। अब मुझे समझ आ गई है। तुम दोनों ने मुझे ऊपर कैद करके रखा था। अब किसकी हिम्मत है जो मुझे ऊपर ले जायेगा। यह घर मेरा है। मैं कहाँ रहूँगी यह मेरे ऊपर निर्भर करता है। आज से तुम दोनों ऊपर वाले कमरे में रहोगे और मैं नीचे इस कमरे में रहूँगी।
अमृता और भानू दोनों एक साथ –
अम्मा यह तुम्हें क्या हो गया है। नीचे मेरी कंपनी के बड़े-बड़े लोग आते रहते हैं और फिर हम दोनों के हिसाब से ऊपर का कमरा बहुत छोटा है। आपको ऊपर जाना ही होगा।
(चौकीदार आ जाता है।)
अमृता – आज अम्मा की तबियत ठीक नहीं है। तुम दोनों पकड़कर अम्मा को ऊपर कमरे में ले जाओ और शांति तुम अम्मा को नींद की दवाई दे देना। सुबह तक तबियत ठीक हो जायेगी।
कमला- अच्छा, तू मुझे इतने दिन से नींद की दवाई दे रही थी। इसलिए मैं दिन भर सोती रहती थी, लेकिन बेटा अब कान खोलकर सुन लो अब मैं जाग चुकी हूँ। मैं यहाँ से टस से मस न होंगी। तुम दोनों चाहो दूसरे घर में चले जाओ।
अमृता- अरे, शांति तूने आज अम्मा को क्या कर दिया। लगता है इनकी दिमागी हालत ठीक नहीं है। चलो भानू हम दूसरे घर में चलते हैं। हमारे पास घर की कमी नहीं हैं। अमन टावर वाले घर का भाड़े वाला पिछले हफ्ते ही खाली करके गया है।
भानू- हाँ, अगर अम्मा इसी तरह जिद्द करेंगी तो जाना ही पड़ेगा।
कमला- बेटा, तुम लोगों ने मेरी दिमागी हालत ख़राब कर रखी थी। आज नीचे आने के बाद ठीक हो गई है। मैं तो आज पार्क में भी गई थी और अब रोज जाऊंगी। देखती हूँ मुझे कौन रोकता है।
(आवेश में आकर कमला व्हील चेयर से खड़ी हो जाती है और क्या देखती है कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। वह खुशी से दो कदम चलकर देखती है। उसकी इच्छा शक्ति से उसके पैरों का दर्द गायब हो गया था। वह खुशी से घर के बाहर निकल आती है। शांति मां जी के पीछे पीछे दौड़ती है। वह मां जी को सहारा देकर अंदर लाकर सोफे पर बैठाती है।)
कमला- अरे शांति, अब मुझे समझ में आया ये लोग मुझे जबरदस्ती का अपाहिज बनाकर मारना चाहते थे। भानू के पिता ऊपर से इसकी सब चालें देख रहे होंगे। उन्होंने ही मुझे आज इतनी हिम्मत दी है। फिर भानू की तरफ देखते हुए। बेटा मिट्टी के घर तो तुम बहुत बना चुके। अब दिल में घर बनाकर देखो। हम बुजुर्गों को सिर्फ अपने बच्चों का सम्मान और प्रेम चाहिए। तुम्हारे दो मीठे बोल चाहिए। जिसके लिए मैं आठ माह से तरस रही थी। तुम लोग यहां रहो या कहीं और। पर हमेशा खुश रहो। अपने बच्चों के सामने आदर्श प्रस्तुत करो। नहीं तो कल तुम्हारे बच्चे भी वही करेंगे। जो तुम आज अपनी माँ के साथ कर रहे थे।
( चाहत और चिंटू दोनों बच्चे दादी से चिपक कर बैठ गए थे। हम दादी को छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। )
भानू और अमृता को अपनी गलती का अहसास होता है। वह दोनों अम्मा के पैर पकड़कर क्षमा मांगते हैं। कमला भी दोनों को क्षमा करके गले लगा लेती है और आँखों में आँसू भरकर कहती है – बेटा बुढ़ापा सिर्फ अपनो का साथ चाहता है।
— निशा नंदिनी भारतीय