कुंडलिनी छंद : कोरोना विकट महामारी
पीड़ित सकल समाज है,कोरोना से आज |
ड्रैगन की करतूत से, गिरी सभी पर गाज |
गिरी सभी पर गाज ,विश्व को इसने मारा |
जीना है दुस्वार,समय की बदली धारा |
*
संयम सद्संकलप से, बनते काम तमाम |
बार बार धों हाथ को,लें विवेक से काम |
लें विवेक से काम ,रहें अपने ही घर पर |
कोरोना मर जाए, नहीं यदि मिले उसे नर |
*
हाथ मिलाना छोड़ के ,नमन करो चितलाय |
सच्ची प्रीत दिखाइये ,भय को दूर भगाय |
भय को दूर भगाय,उचित जो हो अपनाओ |
उर में दृढ़ता धार,कॅरोना मार भगाओ |
*
पीड़ित देश विदेश है,बंद पड़े सब काम |
विकट वायरस है बड़ा ,कोरोना है नाम |
कोरोना है नाम, बांटता मौत फिर रहा |
कैसे छूटे जान ,खोज यह विश्व कर रहा |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’