ग़ज़ल
ग़मज़दा हो रही है धरा आसमा-
वक्त थम सा गया रोग आने के बाद
डोर अब भी तेरे हाथ मे है सुनो-
घर से निकलो ‘कॅरोना’ भगाने के बाद
बाग शाहीन अब मत सियासत गढ़ो-
ना सम्भलपाओगे लड़खड़ाने के बाद
कौम से देश ऊपर रहा है सदा –
माफ़ियाँ ना मिलेंगी सताने के बाद
आदमी आदमी से करे दुश्मनी –
बात माने न विनती सुनाने के बाद
इस महामारी में साथ देता नहीं –
रूप इतना भयावह दिखाने के बाद
मन ‘मृदुल’ हँस सके खिलखिला कर तभी-
देश खुशहाल हो जीत पाने के बाद
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’