गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़मज़दा हो रही है धरा आसमा-
वक्त थम सा गया रोग आने के बाद

डोर अब भी तेरे हाथ मे है सुनो-
घर से निकलो ‘कॅरोना’ भगाने के बाद

बाग शाहीन अब मत सियासत गढ़ो-
ना सम्भलपाओगे लड़खड़ाने के बाद

कौम से देश ऊपर रहा है सदा –
माफ़ियाँ ना मिलेंगी सताने के बाद

आदमी आदमी से करे दुश्मनी –
बात माने न विनती सुनाने के बाद

इस महामारी में साथ देता नहीं –
रूप इतना भयावह दिखाने के बाद

मन ‘मृदुल’ हँस सके खिलखिला कर तभी-
देश खुशहाल हो जीत पाने के बाद

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016