वसीयत
वसीयत
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लोग बोले मुझसे
मरने से पहले वसीयत कर जाओ अपनी
मैंने कहा सोचता हूं किसके नाम कर दूं
वसीयत अपनी
सोचने लगा बेटे के नाम करूं
बेटी के नाम करूं
या फिर कर दूं पत्नी के नाम
सोचते सोचते अंतर्मन कुछ यूं बोला
वसीयत करू तो करू किसकी
जो मेरा है तो उसी की ही तो करू वसीयत
मैं आया था तो न लाया था कुछ
जो भी पाया यही से पाया
जब मेरा नहीं है कुछ तो फिर कैसी मेरी वसीयत
यह तो अमानत में ख़यानत होगी
चंद यादें हैं जो रह जाएंगी
वक़्त के साथ खुसबू की तरह वो भी उड़ जाएंगी
ब्रजेश