सवेरा
सूर्य की किरणें आंखे खोले
मन्द मन्द मुस्कुरा रही
प्रात: जगत के आगमन से
मन प्रफुल्लित हो उठा!
भौरें भी फूलों से लिपटे
पक्षी भी खूब करवल करते
मन्द हवाएं शीतल बहती
मानव को आगाध कराती
खेतों की हरियाली देखो
हरे घास पर मोती बिखरे
मानो सबका दिल हर लेता
सूर्य की किरणें आंखे खोले
जग भी सुन्दर मन भी निर्मल
कोमल कृत घागों में बंधकर
पराए को अपनाकर बंदे
नित्य नए अपनापन करके
सुन्दर जग की छबि निराली
मन प्रफुल्लित हो जग सारा!
विजया लक्ष्मी