गीत “नियमों को अपनाओगे कब”
अपना धर्म निभाओगे कब
जग को राह दिखाओगे कब
करना है उपकार वतन पर
संयम रखना अपने मन पर
कभी मैल मत रखना तन पर
संकट दूर भगाओगे कब
अभिनव कोई गीत बनाओ,
सारी दुनिया को समझाओ
स्नेह-सुधा की धार बहाओ
वसुधा को सरसाओगे कब
सुस्ती-आलस दूर भगा दो
देशप्रेम की अलख जगा दो
श्रम करने की ललक लगा दो
नवअंकुर उपजाओगे कब
देवताओं के परिवारों से
ऊबड़-खाबड़ गलियारों से
पर्वत के शीतल धारों से
नूतन गंगा लाओगे कब
सही दिशा दुनिया को देना
अपनी कलम न रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे कब
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’