न्याय
चाहे बन्धी है आखों पर,
मुलायम मखमल की पट्टी ।
पर कानून की देवी,
अब अंधी नहीं है ।।
देख मुद्देई की,
पद, पैसा, हैसियत ।
न्याय का तराजू ,
अब करता है न्याय ।।
गर पैसा और पद है,
माफ अपराधी के आधे पाप ।
और… गर नेता है तो,
वादी के सब गुनाह हैं माफ ।।
पत्थरबाजों, कुकर्मी नाबालिगों के रक्षक
“मानवाधिकार” ।
और निर्दोष… तारीखों के मायाजाल में,
हो जाए बेजार ।।
इसीलिए… न्याय की छवि पर,
अब अक्सर ।
हैं कालिख के छींटे,
पड़ने लगे ।।
त्रासदी यह है…
खुद अपने फैसलों से
न्याय है डरने लगा
कानाफूसी करने लगा ।
ये कानाफूसी ही,,,
शायद …
अकुंश लगाए… परस्त करे ,,,
अपराधियों के होंसले ।
चाहे हैं सभी कि…
इस अकर्मठता, शिथिलता,भ्रष्टाचार
के विरुद्ध उठे आवाज ।
अब तो करो यह युग विचार ।।
अंजु गुप्ता