बहाने
जाने कब-कहां-कैसे कोरोना वायरस पनपा, सक्रिय हुआ और फिर प्रदूषण का अनुकूल परिवेश पाकर भगवतीचरण वर्मा की सुप्रसिद्ध कहानी ‘मुगलों ने सल्तनत बख्श दी’ के रबर के तंबू की तरह अपने तंबू को को फैलाता ही गया.
महामारी के रूप में अनेक देशों की सैर करता हुआ भारत में भी आ पहुंचा है.
कोरोना को यहां भी अनुशासनहीनता और मनमानी करने वालों की लापरवाही का बहाना मिल गया. इसी बहाने वह फल-फूल रहा है.
बहाने रिर्फ कोरोना ही नहीं, कामवाली बाइयां भी बना रही हैं. सात बजे घर का सारा काम निपटाकर काम के लिए निकलने वाली बाइयां आठ बजे तक सोकर उठती हैं और ”कब आओगी?” पूछने पर ”कोई कामवाली काम पर नहीं आ रही!” का बहाना तैयार है. उनको काम करवानेवालों की मजबूरी और संवेदनशीलता पर भरोसा है. संवेदनशीलता के कारण वेतन तो उन्हें पूरा मिल ही जाएगा.
कॉमिक्स लिखने वालों को बच्चों के मन से वायरस का खौफ दूर करने वाली मैग्जीन का सुपरहीरो ‘वायु’ ईजाद करने का बहाना मिल गया. शायद यही सुपरहीरो ‘वायु’ उनकी मैग्जीन की लोकप्रियता को शिखर पर पहुंचा दे!
कोरोना खुद भी सक्रिय हो गया है, साथ ही इस बहाने उसने बहुत-से वर्गों को सक्रिय कर दिया है-
डॉक्टर वायरस का टीका ढूंढने में लग गए हैं.
आईआईटी दिल्ली ने कोरोनावायरस की जांच करने वाली किट तैयार कर दी, जो बहुत कम लागत में उपलब्ध होगी.
नुस्खे बताने वाले भला क्यों पीछे रहेंगे?
ठीक हुए मरीज को भी नहीं बख्शा का रहा है उनकी एंटीबॉडीज से बनी दवाई TAK 888 बचाव में कारगर होगी, वायरस को भी खत्म करेगी.
कोरोना वायरस की आड़ में हैकर्स को फेक ईमेल से डेटा चोरी का बहाना भी मिल गया है.
अफवाह फैलाने वालों के लिए तो कोरोना सबसे अच्छा बहाना है ही.
”देखते जाइए, किस-किस से किस-किस बहाने क्या-क्या करवाता हूं, यह तो मैं ही जानता हूं!” कहकर कोरोना चलता बना.
जाने कैसे-कब-कहां इकरार हो गया, हम देखते ही रह गए और! और!…. लॉकडाउन का ऐलान हो गया. हम भी किसी से कम थोड़े ही हैं! चूँकि दवाई पर अनुसन्धान चल रहा है तो हमारे सामने बचाव ही एक विकल्प रह जाता है. बचाव भी संगठित प्रयासों से संभव है. सोशल डिस्टेंसिंग भी एक अचूक हथियार है. यह हमीं को चलाना होगा. आपने भी इसे चला दिया है काफी फासला रख कर. शुभकामनाएं.