कविता

लॉक डाउन

 

लॉक डाउन

जब से सुना हमनें कि होगा लॉक डाउन,
मन में लड्डू कई फूटने लगे एक साथ,
सोचा चलो कुछ दिन साथ रहेंगे हम ,
भागमभाग में कब होता दिन , कब होती रात ,
न वो जानते न मुझे होता मालुम,
काम के पीछे भागते ही रहते हमेशा।

पर सोचा न था कभी ख्वाब में भी,
यह लॉक डाउन जान लेगा मेरी,
जब जब सोचा उनके पास बैठेने को,
उसके पहले चाय , नाश्ते की आ जाती फरमाइश,
चाय दो कप बना जाते उनके पास ,
ससुर जी लगाते आवाज़ नाश्ते की ,
सभी को नाश्ता दे जाते उनके पास ,
कहते अभी तुम जाओ फोन आया दोस्त का ,

समय बात करने का उनके संग में ,
निकल जाता मेरे हाथ से देखो,
दोहपर का भोजन बना फ्री हो जाती बतियाने,
खाना ज्यादा हो गया सो लूँ थोड़ा,
मैं बैठी बैठी उनका चेहरा देखती रहती,
कहते थे मिलने दे फुर्सत फिर करेंगे बातें खूब,
जागते ही फिर सभी की आवाज़ आती,
बहु चाय बनाओ चार बज गए है देखो,

चाय बना करो तैयारी सन्ध्या के खाने की ,
परिवार है बड़ा तो लगता समय ज्यादा,
करते करते काम रात का देखो बज गए नो ,
अब खुश हो गई बातें करने मन की करने ,
आओ देखो बड़ी अच्छी पिक्चर आ रही ,
तुमने न देखी होगी कभी देख लो आज ,

आज फिर उनसे बात करने का ख्वाब ,
जो देखा बरसो से मेरी आँखों ने रह गया अधूरा
थोड़ी देर रही खामोश मैं फिर लग गई,
अगले दिन की तैयारी में लेकिन फिर,
थक कर निंदिया आ गई आँखों मे ,
दिन मेरे लॉक डाउन के निकल रहे ऐसे ।।

फ्री है सभी लेकिन फिर भी फ्री न है कोई,
सभी संग है फिर भी नही है संग में ,
नही है समय किसी को किसी के लिए भी,
एक ही कमरे में है सभी अजनबी आज भी,

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।