मुक्तक
१)
वक़्त कहाँ लगता है, दूरियां बढ़ाने में ।
ज़िंदगी गुज़र जाती है, फ़ासले मिटाने में ।।
नफ़रत सभी समझते हैं ना बोलने पर भी ।
वक़्त केवल लगता है प्यार जताने में ।।
२)
मोहब्बत अपनी कुछ इस कदर निभा रहे हैं ।
लाख सितम सहकर उनके, मुस्कुरा रहे हैं ।।
तार टूटे सभी दिल के, उनसे जुदाई के बाद ।
चाहतों की ग़ज़ल फिर भी गुनगुना रहे हैं ।।
३)
मर्जी होगी उनकी तो याद कर लेंगे ।
इच्छा हुई अगर तो बात कर लेंगे ।।
बड़े घर के रहीस ज़ादों का क्या है ।
रिश्ते तोड़ पुराने नए साथ कर लेंगे ।।
४)
मेरी यादों को दिल से मिटा नहीं पाओगे।
विधि से भला कब तलक बचते जाओगे।।
लौट आई भाजपा सत्ता में, देखा तुमने।
नियत मंजिल पर पुनः लौट हीं आओगे।।
५)
आना – जाना आदत है उनकी ।
फिकर जताना आदत है उनकी ।।
आंसुओं के सिवा दिया क्या उन्हों ने ।
हर रोज रुलाना आदत है उनकी ।।
६)
मांगना हीं था तो मेरी जान मांग लेते ।।
ख़्वाहिशें मेरी छीन कर कुछ पा ना सके तुम ।।
उतरना था मुझमें तो दिले हाल जान लेते।।
फिर हम कहते, प्रीत निभा ना सके तुम ।।
— क्रांति पांडेय “दीपक्रांति”