दिलखुश जुगलबंदी- 21
बैठे-ठाले, दिलखुश जुगलबंदी की महफिल सजा ले
1.कोई हाथ भी ना मिलाएगा,
जो गले मिलोगे तपाक से,
यह नये मिज़ाज़ का शहर है,
जरा फासले से मिला करो. (बशीर बद्र)
इस नये मिज़ाज़ के शहर ने ही तो फासले बना दिए हैं,
वरना हमने कब फासलों को दावत दी थी
2.तेरे मेरे दरमियाँ जो फासला है,
वो तेरी साजिश है या खुदा का फैसला है..!!
अलबत्ता कोई शायर अकेला घूमता इस शहर में आया है,
मुराद मन में लोगों से मिलने की रख लाया है,
मगर किस्मत भी तो कोई चीज़ है यारो,
मिलने उससे आए हैं फासले,
जिनसे मिल कर भी वह नहीं मिल पाया है
3.करीब आने की कोशिश तो मैं तब करूँ,
जब हमारे बीच कोई फ़ासला दिखाई दे !!
आज फासले बना लो, दूर से ही गुनगुना लो,
हवाओं पर लिख दो अपना पैगाम,
मोड़ दो इस तरफ जहां है आपका इंतज़ार
4.ठुकराया हमने भी बहुतों को है, तेरी खातिर,
तुझसे फासला भी शायद, उन की बद-दुआओं का असर है!
एहसास आपका मेरे लिए मायने रखता है,
एहसास में फासलों की कोई जगह नहीं,
उनकी बद-दुआएं एहसास से टकरा लौट जाएंगी,
फासले दिलों में नहीं बना पाएंगी
5.भूल जाओ तो फासला है बहुत,
याद रखो तो दिल के बहुत करीब है !!
करीब आने की किसी को फुर्सत नहीं,
फासले ही बन गए हैं बेतार के तार
6.दिल की बातें आप से कहने को दिल करता है,
दर्द ए जुदाई का गम सहने को दिल करता है,
हमारी किस्मत में फासले बहुत हैं,
वरना तो आप के दिल में रहने को दिल करता है
फासले तो पुल हैं दिल तक पहुँचाने का,
दिल की बातें खोल कर कहिए,
मालूम होगा कि मेरा दिल भी ऐसा ही कुछ कहता है
7.फासले घटा देते हैं दिलों में नफरतों को,
वो जो दूर हुये तो कुछ मोहब्बत-सी होने लगी.
फासले चश्मा है ज़िन्दगी का,
दरअसल जिन्हें हम नफ़रतें समझते थे,
वो तो मोहब्बत के निशां निकले
8.वो फासलों में भी रखता है रंग क़ुर्बत (नज़दीकियों) के,
नज़र से दूर सही, दिल के पास रहता है.
आज तकलीफ़ हो रही है हाल-ए-ज़िंदगी पर,
काश वक़्त की आवाज़ सुनी होती
9.करीब आओ तो शायद हमें समझ लोगे,
यह फासले तो गलत फहमियां बढ़ाते हैं.
हम आपके इतने करीब हैं कि फासले दम तोड़ते नज़र आते हैं,
पर क्या करें दुनिया को ज़िंदा रखना है तो फासले को जगह देनी पड़ेगी
10.माना कि मजबूरी थी,
फासला बहुत था बहुत दूरी थी,
कभी सोचता हूँ बेवफा हैं वो,
कभी सोचता हूँ मेरी लकीरें ही अधूरी थी.
लकीरों की कोई मंज़िल नहीं होती,
लकीरें कभी अधूरी नहीं होतीं,
अगर राह में मिल जाए वो, तो अधूरी लकीरें वहीं पूरी होती हैं
11.फासलों का एहसास तब हुआ,
जब मैंने कहा हम ठीक हैं, और उन्होंने मान लिया.!!
तो गोया उनका मानना भी फासले बन गया,
अगर नहीं मानते तो फासले दूरियां कहलाते
12. मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती,
हमारे दरमियां यह फासले, कैसे निकल आये.
फासला बना कर इस टिप्पणी का जवाब ऊपर बॉक्स में लिखा गया,
मेरी तो कोई ऐसी मंशा न थी.
आदरणीय रविंदर जी, सादर प्रणाम.
ब्लॉग ‘फ़ासले’ के कामेंट्स में, रविंदर सूदन और सुदर्शन खन्ना की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.
रविंदर सूदन का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/uski-kahaani-bhag-1/
सुदर्शन खन्ना का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/sudershan-navyug/
अपनी नई काव्य-पंक्तियों को कविता रूप में मेल से भेजें. जिनकी काव्य-पंक्तियां दिलखुश जुगलबंदी में सम्मिलित हो सकेंगी, उन्हें मेल से सूचित किया जाएगा. काव्य-पंक्तियां भेजने के लिए पता-
अच्छा वक्त ज़रूर आता है, लेकिन वक्त पर ही आता है,
मौसम सुधर रहा है फासलों की वजह से
सुदर्शन भाई, आपका ब्लॉग ‘फ़ासले’ तो बहुत शानदार-जानदार था ही, ऊपर से रवि भाई जैसे महा शायर मौज में आ निकले. आप जैसे आशु शायर को तो मानो जीवन मिल गया और हमें दिखाई दे गई, उसमें दिलखुश जुगलबंदी, जो बहुत समय से सांस नहीं ले पाई थी. अब फासलों ने उसकी तमन्ना को पंख लगा दिए. आप दोनों महाशायरों कि हमारा नमन.