उत्साह उमंग से आज गम भुला चलें।
खुशीयों को ढूँढ के गले से लगा चलें।
इठला के बढ़े चले जिंदगी का नाम है,
रूकें नहीं कदम आगे आगे बढ़ा चलें।
चलती सरिता तोड़ बंधनों के पाट को,
उड़ेल कर प्रेमरस सागर में समा चलें।
निष्फल नहीं कर्म तेरा यह कर्मभूमि है
मिलता फल गीता का सार बता चलें।
पाप भरी गठड़ी है सिर पर फोड़ता,
विचलित न हो सत्य मार्ग अपना चलें।
झूठ के जो बल चला गिरता मैदान में,
हो न कर्म बुरा यह जिंदगी रूला चलें।
अहिंसा के पथ पर परोपकारी ही बनें,
दुख रोग संताप हर जन का उठा चलें।
निंदक निंदा ही करें है स्वभाव उस का,
निदंक पास रखिये हर मंजिल पा चलें।
— शिव सन्याल