कविता
मेरी कविता मोहताज नहीं आडंबर और छलावों की
मेरी कविता मोहताज नहीं प्रतिघातों और दुरावों की
मेरी कविता जनमानस के अंतस को छूकर आती है
मेरी कविता के बहने से चंदन की खुशबू आती है
मेरी कविता सुनने वाला दिनमान चलाता है जीवन
हर सुबह खिलाता है कलियाँ हर भोर जगाता है उपवन
मेरी कविता से ऊषा के गालों पर लाली छाती है
मेरी कविता अपने दम से अपना इतिहास बनाती है
— मनोज श्रीवास्तव लखनऊ