गीत/नवगीत

जनता कर्फ्यू के विरोधियों को संदेश

भारत मां की खातिर, कितनों ने कुर्बानी दीन्हा,
तुम कहते हो,”हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।

इसी वतन की खातिर, सावरकर ने क्या-क्या झेला,
अंग्रेजों ने पांच दशक तक,उनको रखा अकेला,
काल कोठरी में रहकर के,गारा खून-पसीना,
कोल्हू को, बैलों-सा जिसने हांफ-हांफ कर ठेला।
भूल गया पच्चास वर्ष जो, दिन या साल-महीना,
तुम कहते हो, “हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।1।।

सोचो, सीमा पर जो चौबिस घंटे हैं सेनानी,
जिनके चारों ओर हमेशा बंदूकें हैं तानी,
थोड़ी तो महसूस कीजिए,उनकी करुण कहानी,
हाड़ कंपाने वाली ठंडी, गर्मी रेगिस्तानी,
याद करो कुछ पल खातिर, ‘हनुमन्थप्पा’ को भी ना।
तुम कहते हो,”हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।2।।

कालापानी वालों की भी याद करो कुर्बानी,
मातृभूमि की रक्षा में न्योछावर किए जवानी,
केवल इक्किस दिन में तुमको याद आ रही नानी,
उस ‘हमीद’ की सोचो, जिस पर गर्वित हिंदुस्तानी,
कभी तिरंगे के डंडे से पकड़ हुई ढीली ना।
तुम कहते हो, “हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।3।।

धंधा या व्यापार गए तो फिर से आ जाएंगे,
अगर जिंदगी फिसल गई तो कुछ ना कर पाएंगे,
मिलना-जुलना और टहलना, बहुत बचा है जीवन
नहीं रहे तो,रिश्ते बिलख-बिलख कर मर जाएंगे,
दर्द पूछिए उनका, जिनसे मम्मी-पापा छीना,
तुम कहते हो, “हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।4।।

इक्किस दिन की सरल तपस्या,घर वालों संग करिए,
कोरोना से लड़ना है तो,तुम बिल्कुल मत डरिए,
हर घंटे में हाथ धोइए,रखो तीन फुट दूरी,
दुवा करो ऊपर वाले से, मिलकर पूजन करिए,
उनको डर है,हम इटली जैसे हो जायं कहीं ना
तुम कहते हो,” हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।5।।

लूट-छिनैती बन्द हो गई,सांसत में रंगदारी,
घर में दुबक-दुबक कर बैठे,सारे भ्रष्टाचारी,
झगड़ा-झंझट खतम हो गया,फैला भाईचारा,
दुनिया की सीमाएं टूटीं, ये ऐसी बीमारी।
हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, नहीं किसी को चीन्हा।
तुम कहते हो, “हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।6।।

एक वायरस अपने संग मेंं लेकर आ जाओगे,
हो सकता,अपने घर में ताला लगवा जाओगे,
हाथ जोड़कर कवि सुरेश का केवल इतना कहना,
“अगर सलामत रहना है तो,बस घर में ही रहना”,
‘एक भूल’, सबको जीवन भर जहर पड़ेगा पीना,
तुम कहते हो, “हमको घर में नजरबंद कर दीन्हा”।।7।।

— सुरेश मिश्र

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154