बाल कविता – गोल ही गोल
सूरज गोल चंदा गोल।
धरती , अंबर , तारे गोल।।
गाड़ी के पहिए हैं गोल।
गेंद हमारी सबसे गोल।।
मुरगी का अंडा भी गोल।
माताजी का बेलन गोल।।
ढोल, नगाड़े, ढप हैं गोल।
तबला और मंजीरा गोल।।
पंखे के चक्कर भी गोल।
घूम रहीं दो सुइयाँ गोल।।
आँखों की दो पुतली गोल।
आलू और टमाटर गोल।।
सेव , संतरा , चीकू गोल।
शिव शंकर की पिंडी गोल।।
बिना लिखे नम्बर भी गोल।
खुली पढ़ाई की सब पोल।।
सोचसमझ कर मुख से बोल।
बोल तभी जब पहले तोल।।
होली आई ले रँग घोल।
अपने उर को ले तू खोल।।
‘शुभम’ आचरण है अनमोल।
चक्र सुदर्शन की जंय बोल।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’