मुक्तक : कविता
जन -जीवन का आधार सतत वह ज्योति पुंज सविता ही है
बंजर उपवन करने वाली जलधार सलिल सरिता ही है
जो राह दिखाती युग -युग से आक्रांत क्लान्त मानव मन को
घनघोर तिमिर मे आशा की वो एक किरण कविता ही है
कविता मन की गहराई है बस शब्दों का विन्यास नहीं
कविता संपूर्ण चेतना है होने वाला आभास नहीं
कविता हर युग के मानव मन को प्रतिबिंबित करती आई
कविता इतिहास बनाती है कविता होती इतिहास नहीं
आज फटती कमीज है कविता
आदमीयत का बीज है कविता
आदमी को बना रही इसां
झूट सच की तमीज है कविता
— मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ