कविता

मैं वृक्ष बनूं

मेरी हमेशा कोशिश रहती है
कि  मैं वृक्ष सा बनूं।
क्यों कि
वृक्ष की छाया में
राह चलते राहगीर
पनाह पाते है।
वृक्ष देता है,
सबको शीतल छांव।

वृक्ष की मजबूती
आंधी और तूफान में
स्थिर रहने का देती है सन्देश।
वृक्ष के फल,
अमीर, गरीब, जातियों में नहीं करते हैं भेद,
और करते हैं पेट की ज्वाला को शांत।

वृक्ष देता है
मंगल करने की शिक्षा,
सहनशीलता है उसका आभूषण,
विशेषता है
जमीन को पकड़े रहनी की।
सर्दी, गर्मी, और बरसात में
निर्विकार खड़ा रहता है।
पर कितनी विडम्बना है
एक दिन
उसका मालिक ही
उसका अस्तित्व मिटा देता है।

वृक्ष रहता है शांत,
तब मैं भी सोचता हूं
कि मैं भी वृक्ष बनूं,
उसी की तरह
विपरीत परिस्थिति में
कभी भी
नहीं खोऊँ धैर्य
रहूँ हमेशा शांत
दूं सबको शीतल छाया
और प्रेम।
वृक्ष की महानता ने ही
उसे बना दिया है पूजनीय
ये है गुणों की खान,
हां मैं वृक्ष बनूं।

— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171