ग़ज़ल
अपना कचरा उसके द्वार।
कहलाता परिवेश सुधार।।
मेरा आँगन मात्र स्वच्छ हो,
सबसे बड़ा देश – उद्धार।
आता है ऋतुओं का राजा,
करते विटप वेश – पतझार।
समझदार कितने नर- नारी,
नाले में दें क्लेश – उतार।
दूर प्रकृति से जाता मानव,
बैनर में संदेश – प्रसार।
पॉलीथिन कर रहे इकट्ठी,
नाली दिए केश सब झार।
कोरोना ! कोरोना!! करता,
करता नहीं देश – उपकार।।
देश बुद्ध का बुद्धू जनता,
हुआ ज्ञान परदेस प्रसार।
बे-चारों को मूढ़ न कहना ,
‘शुभम ‘नहीं ये मेष – प्रकार।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’