असहाय की हाय
जल थल नभ सब हुए विकल
देख धरा पर हाहाकार
अनदेखा भय भयभीत करे
मानव अब मानव से ही डरे
स्वच्छ चाँदनी फैली चहुँओर
कवि हृदय विकल सब ओर
क्यों कर ऐसी आफत आई
सुझे नहीं जवाब किसी को भाई
तन-मन अब सब थक रहा
एकांत ही सुरक्षित कह रहा।
कितनी भीषण आफत आई
जान शांशत में बन आई ।
मज़हब मरक़ज़ क्यों है जरूरी
पूछें बच्चे यह कैसी धार्मिक मज़बूरी ।
— आरती रॉय