मेरी कविता बन जाते हो…
सूरज के चहूँ ओर,
घूमें धरती।
वैसे ही तुम…
मेरी हर रचना का,
केन्द्र बिन्दु बन जाते हो।
हर लफ्ज, हर भाव समर्पित तुमको
हर वक़्त जाने–अंजाने में तुम,
मेरी कविता बन जाते हो।
जब पिरोती हूं ,
अहसासों को शब्दों में ।
तेरी तस्वीर दिखती है पन्नों पर…
उभरे मुस्कान लबों पर मेरे,
और अल्फाजों में,,,
तुम भी तो मुस्काते हो ।
हर वक़्त जाने – अंजाने तुम…
मेरी कविता बन जाते हो ।
कल्पना के सागर में,
जब भ्रमण करूं ।
विचारों को तुम…
स्वप्न लोक ले जाते हो ।
तुम कविता हो या कविता में तुम
मुझको तुम भरमाते हो
हर वक़्त जाने – अंजाने तुम…
मेरी कविता बन जाते हो ।
अंजु गुप्ता