धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

जिनके हृदय श्रीराम बसै तिन और का नाम लियो न लियो

जिनके हृदय श्रीराम वसै तिन और का नाम लियो न लियो।।यह पंक्ति हमारे अराध्य की महत्ता को दर्शाता है। दो अक्षर का यह नाम पूरे ब्रह्माण्ड पर भारी है।इनके नाम लेने मात्र से ही व्यक्ति का मोक्ष है।यहाँ तक परमपिता परमेश्वर शिव भी इनके नाम का जप करते हैं।जीवन की सत्यता का सार है राम नाम, मोक्ष का द्वार है राम नाम, सभी कष्टो के निवारण इन्हीं नामो में निहित है ऐसे मर्यादा पुरूषोत्तम के जन्म दिवस के अवसर पर हम भारतवासी उनके भक्ति में यह रामनवमी अर्थात चैत नवमी संपूर्ण भारत में धूम-धाम से मनाते है, जो भगवान और भक्त के बीच अटूट सम्बन्ध,आस्था तथा इतिहास की गौरव गाथा का परिचायक युगो युगो से दिन प्रतिदिन बढा रहा है।
      पौराणिक कथानुसार अयोध्या के प्रतापी राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी,इसलिए उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से संतान प्राप्ति का मार्ग  पुछा।ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाने को कहा।अतः राजा दशरथ ने महर्षि ऋष्यस्रिंग को यज्ञ करने के लिए आमंत्रित किया। यज्ञ पूरा होने के कुछ समय बाद उन्हें  श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के रूप में चार पुत्रो की प्राप्ति हुई।
    वेद पुराण और धार्मिक ग्रंथो और हिन्दू कलेंडर के अनुसार प्रभू श्री राम को भगवान् विष्णु जी की 10वीं अवतारों में से 7वां अवतार माना गया है। इसलिए उनके जन्मदिन पर प्रतिवर्ष उत्सव मनाया जाता है दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष नौंवी के दिन को मानाया जाता है इसीलिए इस दिन को चैत्र मास शुक्लपक्ष नवमी भी कहा जाता है।हिन्दू धर्म के लिए रामनवमी धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है। इस त्योहार को पूरे भारत में आस्था,विश्वास, भाईचारे और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार अयोध्या के रजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र प्रभू श्री राम के जन्म दिवस की ख़ुशी में मनाया जाता है।
इस तिथि को लोग अपने घरों में भगवान् श्री राम की अराधना करते हैं और अपने परिवार और जीवन की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। पूरे देश में लोग मर्यादा पुरूषोत्तम की लीलाओ का बखान करते हैं उनके प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास के साथ लोग इस पर्व को मनाते है।
 इस पर्व की विशेषता बसंत ऋतु और नवीन फसलो को लेकर भी है क्योंकि रवि की फसल तैयार हो चुकी होती है किसान कटाई करने के लिए इस दिन से ही शूरूआत करते हैं और नवीन फसलो से बने पकवानो को ही श्री चरणों में समर्पित करते हैं।पतझड से प्रकृति भी पुनः नवीन पत्तियो और पुष्प पराग के साथ वातावरण को महकाने को आतुर होने लगती है।नवीन फल पेडो की शोभा बढाते है।पक्षियो का चहचहाना आरंभ हो चुका होता है आखिर क्यू न हो प्रभू का जो आगमन हो रहा होता है।
    मंदिरों को  सजाया जाता है लोगो की लंबी लंबी कतारे देखने को मिलती है सभी लोग प्रभू श्री राम का दर्शन मंदिरो में करने को उत्सुक हो जाते है।भक्त रामचरितमानस का अखंड पाठ करते हैं और साथ ही मंदिरों और घरों में धार्मिक भजन, कीर्तन और भक्ति गीतों के साथ पूजा आरती की जाती है। इस दिन कई लोग ब्रत रखते हैं।रामनवमी के उत्सव को मानाने के लिए विश्व भर से भक्त इस दिन अयोध्या, सीतामढ़ी, रामेश्वरम, भद्राचलम में जमा होते हैं।कुछ जगहों से तो पवित्र गंगा में स्नान के बाद भगवान् राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान  की रथ यात्रा भी निकाली जाती है।भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है जैसे महाराष्ट्र में रामनवमी को चैत्र नवरात्रि के नाम से मानते हैं, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू और कर्नाटक में इस दिन को वसंतोसवा के नाम से मनाया जाता है।लोग अपने घरों में मिठाइयाँ, प्रसाद और शरबत पूजा के लिए तैयार करते हैं। हवन और कथा के साथ भक्ति संगीत, मन्त्र के उच्चारण भी किये जाते हैं।भक्त गण पुरे 9 दिन उपवास रखते हैं और रामायण महाकथा को सुनते हैं और कई जगह राम लीला के प्रोग्राम भी आयोजित किये जाते।श्रीराम की कथायें लीलाओ अथवा गुणों का वर्णन पग-पग पर हमारी सभ्यता, संस्कृति, बोल-चाल  नित- कार्य कलापो यहाँ तक की सोते जागते मिलता रहता है इसलिए तो हर तत्व मे वे मौजूद है यहाँ के कण कण मे श्रीराम हैं।
— आशुतोष

आशुतोष झा

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