लघुकथा

नमन!

घड़ी समय है या समय घड़ी यह तो नहीं पता, पर इतना अवश्य पता है कि घड़ी और समय का चोली दामन का साथ है.

एक-एक पल से सैकिंड, एक-एक सैकिंड से मिनट, एक-एक मिनट से घंटा, एक-एक घंटे से दिन, एक-एक दिन से सप्ताह, एक-एक सप्ताह से महीना और एक-एक महीने से साल, दशाब्दी, शताब्दी, युग आदि बनते चले जाते हैं.

आमतौर पर वर्तमान में सेकंड, मिनट, घंटे, दिन-रात, माह, वर्ष, दशक और शताब्दी तक की ही प्रचलित धारणा है.

इसके अतिरिक्त एक अणु, तृसरेणु, त्रुटि, वेध, लावा, निमेष, क्षण, काष्‍ठा, लघु, दंड, मुहूर्त, प्रहर या याम, दिवस, पक्ष, माह, ऋतु, अयन, वर्ष (वर्ष के पांच भेद- संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर, युगवत्सर), दिव्य वर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प, अंत में दो कल्प मिलाकर ब्रह्मा का एक दिन और रात, तक की वृहत्तर समय पद्धति निर्धारित है.

एक-एक कुसुम से चमन में बहार आ जाती है और गुलशन सज जाता है.

एक-एक बूंद से सागर भर जाता है, यही सागर जीवन की गागर को लबालब कर देता है.

एक-एक तिनके से घरौंदा बनता है, जो परिंदों के जीने का सहारा बनता है.

एक-एक शब्द से ब्लॉग बनता है और एक-एक ब्लॉग से शतक सजता चला जाता है. एक दिन यही शतक सिलवर जुबिली में परिवर्तित हो जाता है और फिर लगती है सिल्वर जुबिली की सिल्वर जुबिली यनी 2525 ब्लॉग का समूह.

पाठकों के प्रोत्साहन के बिना न तो सिल्वर जुबिली लग सकती है और न ही सिल्वर जुबिली की सिल्वर जुबिली.

एक-एक पाठक से ब्लॉग ‘रसलीला’ का कारवां सजता चला गया और हर ब्लॉग पर महफिल जमती चली गई.

11 जुलाई, 2011 से नए-नए पाठक मिलते चले गए और पाठक भी ऐसे, कि ‘सौ बात की एक बात!’

अद्भुत-अद्भुत-अद्भुत. अकल्पनीय, अकथनीय, अनिर्वचनीय प्रतिक्रियाएं.
ऐसी प्रतिक्रियाएं, कि प्रोत्साहन का भी प्रोत्साहन बढ़ जाए!

‘सौ बात की एक बात!’ कि सिल्वर जुबिली की सिल्वर जुबिली की घड़ी आ गई.

इस घड़ी को नमन, इस घड़ी को लाने वालों को नमन, सिल्वर जुबिली की सिल्वर जुबिली को नमन. हम अल्फ़ाज़ भेजते हैं, उनको जज्बात समझने वालों को नमन.

आप सब लोगों के प्रेम-प्यार को नमन! स्नेह-सम्मान को नमन!! साथ-सहयोग को नमन!!!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “नमन!

  • लीला तिवानी

    हमें 2525वें ब्लॉग तक पहुंचाने का पूरा श्रेय आप सभी सम्माननीय पाठकगण एवं कामेंटेटर्स को ही है, जिनके प्रोत्साहन से हमें निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही.

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