कहां तुम चले गए!
यह कविता मेरी स्वर्गीय पत्नी पुष्पा देवी को समर्पित है
हाथ छुड़ाकर तुम हो गए भीड़ में गुम
कैसे ढूंढें हम, कहां हो तुम
तुम्हें पुकारे हम
कहां तुम चले गए!
वह घर जो तेरा था, सुनसान पड़ा है अब
तेरे बिना वीरान पड़ा है अब
तेरी यादें बसती हैं वहां
दीवारें रोती है वहां नाम तेरा ले-लेकर
अब कैसे पुकारे हम
कहां तुम चले गए!
मन नहीं करता वहां जाने को
एक हूक-सी उठती है
एक चीख निकलती है
पुष्पा कहकर अब किसे पुकारें हम
आई-जी सुनने को मेरी रूह तरसती है
कहां तुम चले गए!
आवाज किसे दें किसे पुकारे हम
जब तू नहीं दिखती,यह घर खाने को आता है
हर शै पर नाम तेरा,तेरी याद दिलाता है
दिल में है यह गम, भूल सकेंगे ना हम
कहां तुम चले गए!
जो जोड़ कर रखा था तूने
वह टूट गया परिवार
रिश्ते-नाते टूट गए सब
किसी पर रहा ना कोई ऐतबार
कहां तुम चले गए।
बच्चों ने भी छोड़ दिया मुझको
जो प्यार का बंधन था तोड़ दिया उसको
अक्सर मैं रोता हूं साथ तेरे प्यार की यादें हैं
गए छोड़ अकेले तुम
कहां तुम चले गए!
तू ही मेरे प्यार की दुनिया थी
तेरा ही सहारा था
जाने से तेरे टूट गया हूं मैं
है कौन मेरा अपना,ना ही कोई प्यारा है
कैसे भूल पाएंगे हम
तेरा यह गम
कहां तुम चले गए!
जाने से पहले एक बार तो कहा होता
जो दर्द सहा तूने
उसे कर ना सके सका मैं कम
तेरे बिन किससे करें हम प्यार
किससे करें इकरार
गम तेरी जुदाई का सह सकेंगे कैसे हम
कहां तुम चले गए!
यादें तेरी हरदम मेरे साथ ही रहती हैं
अब किससे करें फरियाद,किसके लिए जाएं घर रहती है वहां तेरी याद
कहां तुम चले गए।
अंत समय पर तेरे पास खड़े थे हम
मगर कुछ कर ना सके थे हम
कुछ कह ना सके थे हम
आंखों में आंसू भर कर
किया आखिरी सलाम
कहां तुम चले गए!
-कृष्ण सिंगला
प्रिय कृष्ण भाई जी, अत्यंत भावभीनी कविता के लिए बधाई.
आदरणीय लीला बहन जी मेरी इस कविता पर भावभीनी प्रतिक्रिया के लिए दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद।
बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ। पत्नी वियोग की पीड़ा का सजीव चित्रण किया गया है कविता में। मोह के बंधन मनुष्य को बहुत दुःख देते हैं। हमें उन महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहियें जिनके जीवन में पत्नी वियोग हुआ परन्तु उन्होंने स्वयं को बहुत अच्छी तरह से संभाला। मेरी इस कविता के लेखक महानुभाव को गहरी संवेदनाएं हैं। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आप रचनाओं को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं. प्रतिक्रिया लेखक के लिए आइना होती है. इस आइने में वह अपनी रचना की गहराई को देख सकता है. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. यक कविता कवि के मन से निकली मार्मिक आहट है. कृष्ण भाई जी मर्म के कवि हैं. रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया व धन्यवाद.
आदरणीय लीला बहन जी,”कहां तुम चले गए”अपनी स्वर्गीय पत्नी के प्रति उसकी मृत्यु के बाद कवि बनने पर मेरी ओर से उसके लिए प्रथम श्रद्धांजलि है। मेरी सभी रचनाएं आपकी आंखों से होकर गुजरी हैं।सभी मर्म से सरोबार हैं। आपके कथन अनुसार जय विजय में अकाउंट खोल लिया है नवभारत टाइम्स का प्रोसेस थोड़ा उलझन भरा है जिसे खोलने में मुश्किल आ रही है। अभी तो पैर जमाने का प्रयास कर रहा हूं। कथा,कहानी,कविता हर विषय पर लिखने का प्रयास करूंगा।आपको निराश नहीं करूंगा।शानदार प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया।
आदरणीय मनमोहन भाई जी,पत्नी वियोग संबंधी मेरी कविता में मेरे हृदय के मर्म को पहचाना आपने मेरे लिए यह गर्व की बात है। कोई बड़ा लेखक तो नहीं मैं अभी 2 महीने पहले की ही तो बात है जब मेरे हृदय का मरम इतना बढ़ गया कि उसने मेरी प्रथम रचना (जिससे मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मानता हूं) को जन्म दिया था।लीला बहन जी ने उसे शीर्षक प्रदान किया “दिल तो तुम्हारा मेरे पास है।” सच में मेरी इस पहली ही रचना पर आप भाई बहनों की तरफ से जो प्रतिक्रिया मिली वह लाजवाब थी।इसका श्रेय जाता है लीला बहन जी को,इन्होंने रातों-रात मुझे नवोदित कवियों की पंक्ति में ला खड़ा किया।आगे भी आप सब का सहयोग मिला तो और भी अच्छा लिखने के प्रयास करूंगा। आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया।