देशभक्ति की ज्योत जगायी
अंधकार था जब जन-मन में,
घोर तमस था सकल भुवन में
तब मैंने भी रीत निभायी,
देश-भक्ति की ज्योत जगायी!
विषधर कुछ फुफकार रहे थे
जब अपने भी हार रहे थे
पूँछ तानकर काले बिच्छू
डंक विषैला मार रहे थे
देश-राग के साध सुरों को,
मैंने अपनी बीन बजायी
तब मैंने भी रीत निभायी,देश-भक्ति की ज्योत जगायी!
संकट में जब वतन खड़ा था,
तब कुछ ने थी आँखें फेरी
कुछ ने मिलकर पीठ दिखाई,
कुछ ने की आने में देरी
अग्नि-शिखा धरकर हाथों में,
मैंने तब आवाज़ लगायी
तब मैंने भी रीत निभायी,देश-भक्ति की ज्योत जगायी!
किस्मतवाले ही सत् -पथ पर,
चलने का अवसर पाते हैं
पर नैनों पर बाँध के पट्टी,
स्वार्थी जन कब चल पाते हैं?
मातृभूमि से की गद्दारी,
जब उसने आवाज़ लगायी
तब मैंने भी रीत निभायी, देश-भक्ति की ज्योत जगायी!
— शरद सुनेरी