आत्माराम अपने बेटे आलोक और पत्नी शांति के साथ लड़किवालों के घर पहुंचे। सभी ने लड़की देखी। बारी – बारी उससे कुछ सवाल पूछकर संतुष्ट हुए। लड़की की मां ने अपनी बेटी खुशबू का गुणगान गाते हुए कहा, “ मेरी बेटी दसवीं पास है। सिलाई – कढ़ाई सीख रही है। खाना बनाने का बहुत शौक है ………………। “ आत्माराम ने उनकी बात काटते हुए कहा, “ बस , हमें बहू के रूप में ऐसी ही सर्वगुण संपन्न लड़की की तलाश थी। हमें ये रिश्ता मंजूर है। दहेज – वहेज की बिलकुल चिंता न करें। बस, शादी की तैयारियाँ शुरू कर दें। “ यह सुनकर लड़किवालों की ख़ुशी की सीमा न रही। उन्होंने सभी का मुंह मीठा करवाया। शांति को आत्माराम का उतावलापन दिखलाना अच्छा नहीं लगा। मजबूरन, मुस्कुराते हुए खुशबू को गले से लगाया।
शादी के कुछ महिनों बाद, शांति का अपनी समधिन से एक कार्यक्रम के दौरान सामना हुआ। एक दूसरे का हाल – चाल पूछा। शांति ने अपने दिल में दबी भड़ास निकालते हुए समधिन से गुस्से में आकर कहा, “ आपकी बेटी को अंग्रेजी छोड़िए, हिंदी तक ठीक ढ़ंग से नहीं आती। सिलाई – कढ़ाई के नाम पर सुई में धागा पिरोना आता है। भोजन के नाम पर सिर्फ़ दाल, चावल बनाना सिखाया है। रोटियाँ तक गोल बेलनी नहीं आती थी, मुझे सिखाना पड़ा …………. इतना बड़ा धोखा क्यों दिया ? “
खुशबू की मां ने विचलित हुए बिना, समधिन को समझाते हुए कहा, “ देखिए बहन जी, रिश्ता जोड़ने से पहले, वर – वधू दोनों पक्ष वाले अपने बच्चों के बारे में थोड़ा बढ़ा – चढ़ाकर बोलते ही हैं। “ शांति समधिन के प्रत्युत्तर से सकते में आ गई। ऐसे लगा जैसे किसी ने गरम तवे को तुरंत ठंडा करने के लिए, उस पर ठंडे पानी के छींटें मार दिए हों।
-– अशोक वाधवाणी