एहसास
एहसास
कुछ आँखों को एहसास है ,
तो कुछ लफ्जों को ,
कोरोना की मार भी ,
प्रकृति का एहसास है ,
यारों रङ्ग बदले ,
जीवन का ढङ्ग बदले ,
बदले अपने एहसास ,
नहीं तो करवट सब बदल देगी ,
धरा पर मैने देखा है
कभी प्लेग की आहट ,
कभी हैजे की मार ,.
कभी फ्लु , कभी डेंगु का वार ,
और कोरोना का देखो हाहाकार ,
लाशों के ढेर देख ,
काँप गयी नई दुनिया ,
इटलीः , जर्मनी , स्पेन टूट गए.
रब जन-जन से रूठ गए ,
यह भी एक एहसास है प्रकृति का ,
कुछ बुरा हो रहा है तो
कुछ अच्छा भी दिख रहा है
प्रकृति कर रही खूद को स्वच्छ ,
जो काम कर न सके हम ,
करवट ले कर दिया क्षण में ,
यह भी एहसास है प्रकृति का
हम जीते है सुख के लिए ,
चाह में भूल गए कि
जगद्जननी के स्वरूप को ,
जननी भी क्या करती ,
रचना पड़ता कोहराम ,
ड़सना ही पड़ा सुत को ,
प्रकृति का एहसास है “वाग्वर” ।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा