लॉकडाउन
लॉकडाउन, कर्फ़्यू, और धारा 144 कहाँ जानती हैं
तुम्हारी यादें कोई सरकारी आदेश कहाँ पालती हैं
न नगर, न शहर ,न सरहद ,न बॉर्डर पहचानती हैं
मुंडेर पर बैठी गौरैया बस तुम्हारा नाम पुकारती हैं
सांझ हो कि सहर दिन हो या कि दोपहर हिचकियाँ
जब आती हैं सारी सीमायें लाँघती हैं
तुम्हारी गज़लें , तुम्हारी नज़्में इस पतझड़ में भी
सुमधुर स्मृतियों की धानी चादर तानती हैं
✍️रजनी त्रिपाठी
यादें