ग़ज़ल : कोरोना का क़हर
ये कोरोना का क़हर, साज़िशों की बू आये
हर तरफ़ मौत का डर, आँखों में आँसू आये
घर को, घर के ही चराग़ों ने है जला डाला
गाँव शमशान हुए, लाशों से बदबू आये
सारी दुनियाँ हुई हलकान महामारी से
रंग इसका, न कोई रूप, न ख़ुश्बू आये
हम रुकेंगे, न थकेंगे, ये जंग जीतेंगे
इस लड़ाई में मेरे साथ अगर “तू” आये
धर्म-मज़हब न बने जंग में कोई रोड़ा
सभी अह्बाब की जानिब से आर्ज़ू आये
शाद होगा ये चमन, फूल मुस्कुरायेंगे
बाग़बानों की तरह, जज़्बा जो हरसू आये
इस दुआ से ये दिया, ‘भान’ फिर जलायेंगे
वतन-परस्ती की, इन्साँ में जुस्तुजू आये
– – उदयभान पाण्डेय ”भान”
(तू–ईश्वर, अह्बाब – मित्र, शुभ चिंतक, जानिब – की ओर से, आर्ज़ू-प्रार्थना, शाद-ख़ुशहाल, बाग़बान-माली, हर सू-चारों तरफ़, जुस्तुजू – चाहत)