मां का आंचल
जब मेरा मन
उदासी के भंवर
में गोते लगाता है
तब मुझे वह
आंचल की याद
आ जाती है
जिसमें सिर छुपा
लेने पर
हृदय को बड़ा सुकून
मिलता है
और/उस आंचल की
छांव में
गमों का नामोनिशां
कहीं दूर दूर तक
मुझे छू भी नहीं
सकता
ऐसा है मेरी
मां का आंचल।।
— मनोज बाथरे चीचली