धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हनुमान जयंती विशेष

कौन है जो संकट में सबके काम आते हैं सब के दुलारे हैं सबको प्यार है वह हनुमान ही हैं जो राम लक्ष्मण सीता सभी के प्रिय है सुग्रीव जामवंत नल नील अंगद सभी के विश्वासपात्र है सब के संकट हरने वाले हैं। जब भी भगवान राम पर कोई संकट आता है आया हनुमान स्वयं सीना ताने खड़े रहते हैं, कोई भी संकट श्री राम तक बिना हनुमान से मुकाबला किए नहीं पहुंच सका। जब माता सीता को ढूंढने का प्रश्न आया तब समुद्र के किनारे पहुंचकर वानर दल हताश हो चुका था संपाती के बताए अनुसार 100 योजन समुद्र को पार करके लंका पहुंचने की शक्ति वानर दल में किसी में नहीं थी।
“जामवंत के वचन सुहाए, सुनी हनुमंत ह्रदय अति भाए।।”
यह देख जामवंत हनुमान की ओर आग्रह भाव से कहते हैं कि है कपिश्रेष्ठ ! आप संकट मोचन हैं, शंकर के रुद्रावतार है, पवन पुत्र हैं, आपके जैसा बलशाली पूरी पृथ्वी पर नही, हमारे संकट को दूर करें, माता सीता का पता लगाएं, अपनी शक्तियों का स्मरण करें, आपका जन्म इसी कार्य के लिए हुआ है। यह वचन सुन हनुमान जी को अपनी शक्तियों का ज्ञान होता है वे पूर्ण बल से लंका की ओर प्रस्थान करते हैं। बीच समुद्र में सुरसा नामक राक्षसी उनकी परीक्षा लेती है जहां समझने का विषय है पूर्ण शक्तिशाली बलशाली महाबली हनुमान जो सुरसा को एक प्रहार से समाप्त कर सकते थे, उन्होंने बड़ी चतुराई से उसकी समस्या का हल किया।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा, अति लघुरूप पवनसुत लीन्हा।
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा, मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
 सुरसा ने हनुमान जी से अपने मुख में जाने का आग्रह किया, अपना आकार सहस्त्र योजन बढ़ाकर पुनः हनुमत सूक्ष्म रूप लेकर सुरसा के मुख्य में जाकर वापस आ जाते हैं, क्योंकि उस समय राम काज अर्थात माता सीता का पता लगाना अधिक आवश्यक था। इसलिए वे सुरसा से द्वंद नहीं करते, उसी प्रकार मनुष्य जब किसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता है तब उसके मार्ग में कई बाधाएं आती हैं कई विकट परिस्थितियां आती हैं कई संकट आते हैं, उन्हें अपनी चतुराई से हल करते हुए हमें लक्ष्य की ओर केंद्रित होकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। यही सीख हनुमान जी के इस पराक्रम से सीखने को मिलती है। इसके बाद जब पर आगे बढ़ते हैं तब लंकिनी नामक राक्षसी जो लंका की पहरेदार थी, उन्हें रोकती है।
नाम लंकिनी एक निशिचरी, सो कह चलेसि मोहि निंदरी।
जानही नही मरमु सठ मोरा, मोर आहार जहां लगी छोरा।।
मुठिका एक महाकपि हनी, रूधिर बमति धरनी ढनमनी।
पुनि सँभारि उठी सो लंका, जोरी पानी करी बिनय ससंका।।
उसे अपनी मुष्टिक के एक प्रहार से वह मरण तुल्य कर देते हैं लंका का विनाश जानकर लंकिनी हनुमान को नमन करके प्रस्थान करती हैं, लंका में जाकर माता सीता का पता लगाकर हनुमान वापस आ सकते थे किंतु एक श्रेष्ठ दूत धर्म के कारण शत्रु के बाहुबल शक्ति शस्त्र भंडार कमजोरी आदि का आकलन करना आवश्यक था, इसीलिए अशोक वाटीका को तहस-नहस करते हैं अक्षय कुमार को मारते हैं मेघनाथ से युद्ध करते हैं किंतु जब मेघनाद ब्रह्मास्त्र का संधान करता है
“ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा, कपि मन कीन्ह बिचार।
जो न ब्रह्मसर मानउँ, महिमा मिटइ अपार।।”
तब ब्रह्मास्त्र का सम्मान रखते हुए स्वयं बंध जाते हैं। काल को डराने वाला मृत्यु को बांधने वाला परम पराक्रमी राम भक्त राम काज के लिए स्वयं बंध जाते हैं ताकि ब्रह्मदेव का मान बना रहे ।
नाथ पवनसुत किन्ही जो करनी, सहसहुँ मुख न जाई सोई बरनी।।
जब अंगद जामवंत संग वानर दल माता सीता का पता करके वापस आते हैं, तब हनुमान जी सबसे पीछे आकर खड़े हो जाते हैं, वानर दल के समुद्र तट पर पहुंचने और हनुमान जी द्वारा 100 योजन समुद्र को पार करके माता सीता का पता लगाने का समाचार जामवंत श्री राम को सुनाते हैं, रामकाज हनुमान के अतुलित बल के कारण ही अनपन्न हुआ। इतना ही नहीं लंका का दहन करके युद्ध से पूर्व ही शत्रु दल में राम की सेना का भय बनाना तथा शस्त्र भंडारों को समाप्त करना, पूरी रणनीति के साथ हनुमान जी ने कार्य पूर्ण किया। इसके बाद भी स्वयं जाकर श्रीराम के सम्मुख खड़े नहीं हुए। यहां एक सबसे बड़ा संदेश छुपा है, श्रेय लेने का। आज के समय में छोटे से छोटा कार्य करके व्यक्ति श्रेय लेने के लिए मंच, माला, माइक चाहने को प्रस्तुत रहता है किंतु जिनके ह्रदय में भक्ति व सेवा का भाव होता है वे कभी भी श्रेय लेने के लिए आगे नहीं आते, समर्पण भाव से पीछे खड़े रहते है, वास्तव में ऐसे व्यक्ति ही श्रेष्ठ पुरुष बनते हैं आगे जाकर समाज को सही दिशा प्रदान करते है।
हरषि राम भेंटेउ हनुमाना, अति कृतज्ञ प्रभु परम् सुजाना।।
अब राम रावण युद्ध में जब लक्ष्मण मेघनाद के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए तब श्री राम पर जैसे पहाड़ गिर गया, वानर दल में शोक छा गया, सीता को खोने व लक्ष्मण के मूर्छित होने से राम व्याकुल हो गए, धीरज खो चुके थे, तब जामवंत के कहे अनुसार हनुमान सुषेण वैद्य को लेकर आये, उसके बताए अनुसार संजीवनी बूटी न पहचान पाने पर पूरा पर्वत उठा लाये, जिससे लक्ष्मण पुनः चेतन्य हुए, प्रभु श्री राम ने हनुमान को ह्रदय से लगा लिया।
अस कही कपि निज हृदय विदारा। रोम रोम प्रभु राम उदारा।।
रामजी का राज्याभिषेक होने के अवसर पर जब सीता माता ने हनुमान को रत्न माला भेंट की तब हनुमान उसके मनकों को तोड़ तोड़कर देखने लगे, विभीषण ने प्रश्न किया, कि रत्नों को क्यों तोड़ रहे हो ? तब हनुमान ने कहा कि प्रकाश के सिवा इसमें कुछ नही है, यदि इसमें राम नही तो ये मेरे किसी काम की नही। तब तो तुम्हारे अंदर भी राम होना चाहिए ? यह प्रश्न के उत्तर में हनुमान जी ने अपना सीना फाड़कर दिखाया, सीता राम युगल दर्शन कर सभी जयजयकार करने लगे।
इस धरती पर हनुमान अकेले हैं जो है तो भक्त किंतु भगवान की तरह पूजे जाते हैं प्रभु श्रीराम से ज्यादा मंदिर हनुमान जी के हैं हनुमान जी अधिकतर सनातनी हिंदुओं के आराध्य है उनमें प्रखर बुद्धि बल गुण संस्कार आदि के दर्शन समाज करता है। उन्हें आदर्श मानकर ही बजरंग दल हिंदू समाज की रक्षा का कार्य करता है जो कार्य त्रेता में भगवान श्रीराम ने किया, द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने, वही धर्म की रक्षा अधर्म के नाश का कार्य करने के लिए बजरंग दल का प्रादुर्भाव हुआ है। कोरोना से लड़ने वाले इस युद्ध में बजरंग दल ने भी इस वर्ष हनुमान जन्मोत्सव घर पर ही 11 हनुमान चालीसा पाठ करके मनाने को आदेशित किया था। इस वर्ष हनुमान जी से हम सभी यही प्रार्थना करते है कि हे संकट मोचन विश्व व मानव सभ्यता को इस संकट से उबारें, आप चाहे तो भक्ति की शक्ति हर असंभव को संभव कर सकती है, पूरा मानव समाज स्तब्ध है, इस संकट में आप ही प्रकाश पुंज बनकर हमें मार्ग दिखाने की कृपा करें व शक्ति साहस संबल दें जिससे हम देशवासी एकजुट होकर कोरोना संक्रमण व इसे फैलाने वाले असमाजिक तत्वों से लड़ सकें। हनुमान जी शासन व प्रशासन के भी इष्ट रहे हैं, आज आपके आशीर्वाद की सबसे अधिक आवश्यकता उन्ही पुलिस जवानों को हे जो अपना जीवन संकट में डालकर हमारी सुरक्षा को सड़कों पर तैनात है, महावीर बजरंगी आगे बढ़कर अपने भक्तों की रक्षा करें।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश