कविता

मैं और मेरा बिस्तर

इस लॉक डाउन के मौसम में
मुझ से दुखी है मेरा बिस्तर
उससे इतना मोह हो गया
नहीं छूटता मुझसे मेरा बिस्तर
जब देखो पसरा रहता हूं इस बिस्तर पर
गद्दे भी करहाने लग गए अब मेरा बोझ ढोते ढोते
कुछ धंसने लगे भी हैं ये अब मेरे प्रिय गद्दे
सोचता हूं कि कुछ कम लेटू इन पर
सकून इतना देते है मुझको ये कि
रोक नहीं पाता अपने आप को
खिचा चला जाता हूं गोद में इनकी
पत्नी से हो जाती तना तनी
हर वक़्त पसरे रहते हो इन पर
कुछ हाथ बटा दो मेरा भी
झाड़ू पोंछा न सही
चमका दो झूठे पड़े हुए बर्तन ही सही
कल से तो तुम चले जाओगे दफ्तर
नहीं होगा समय तब तुम पर
आज तो खाली पड़े तोड़ रहे बिस्तर
कुछ घर का चोका बर्तन ही कर लो
सुबह शाम की इस चिक चिक से
अब तो आजिज आ गए हम
है मालिक सब दुरुस्त कर दो
लगे हम अपने धंधे पर
नहीं तो रोज रोज की इस खटखट से
शुरू न हो जाए महाभारत

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020