सूरज न सही
सूरज न सही
एक दीप ही
रोशन करें
अँधेरे तोडऩे ।।
देख रहा हूँ
चहूँ ओर ही
जात-पात का
पन्थवाद का
अलगाववाद का
बहुतेरा राज है
कहर बनकर
टूटते है खूद पर ,
समूल नाश करने ,
भान भी नही हैं
अपनों की मौत का ,
शिकंजा न कस!
— विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा