दो मुक्तक
राष्ट्रहित जो बहा था खून उसको नमन है,
जलियाँ वाले बाग के शहीदों को कोटि-कोटि नमन है |
अंग्रेजों की गोलियां खाकर हुए कुर्बान उन शहीदों के लिए –
आज भी प्रत्येक भारतीय के हृदय में तपन है ||
गोलियों की तड़तड़ाहट में इंकलाब के गूँजे नारे,
डायर के अत्याचारों से माँ भारती के लाल न हारे |
नर-नारी, बूढे-बच्चे और जवान सबने दी कुर्बानी –
जलियाँ वाला बाग मत भूलना, अंग्रेज बने थे हत्यारे ||
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा