गज़ल
करोना को घर अपने बुलवा रहे हो।
बराबर जो बाहर से आ जा रहे हो।
हक़ीक़त बताने से कतरा रहे हो।
भला झूठ इतना क्यूँ फैला रहे हो।
छुपाना भला चाहते क्या हो मुझसे,
नज़र जो मिलाने से कतरा रहे हो।
यकीनन ज़रूरी कोई काम होगा,
जो क़ासिद से रहरह के बुलवा रहेहो।
पसीना बताता है माथे का तेरे,
किसी बात से यार घबरा रहे हो।
— हमीद कानपुरी