ईश्वर की अद्भुत लीला
आज लोगों ने कोरोना को भोगा है। ईश्वर की लीला इतनी निराली है, की उसे बुद्धि से समझना किसी के बस की बात नहीं।
सेन टिआगो फ्लाइट 513, 4 सितम्बर 1954 को 92 यात्रियों को लेकर उड़ान भरती है । जर्मनी से ब्राजील की और 18 घंटे का ये सफर था लेकिन कई महीने क्या, साल गुजर गए और यह उड़ान कभी भी, कहीं भी, लेंड ही नहीं हुई। लोगों ने मान लिया की उसे या तो नीला आसमान निगल गया या धरती में कहीं समा गया । उसके बाद यह फ्लाइट हमेशा के लिए बंद कर दी गयी।
35 साल बाद 1989 में वही फ्लाइट ब्राजील के एयरपोर्ट पर लेंड हुई। वहां की एयरपोर्ट ने पायलट के साथ संपर्क करने की कोशिश की, पर संपर्क नहीं हो पाया। लेंड हो जाने के बाद एयरपोर्ट वाले डरते डरते विमान के अंदर गए। उन्होंने जो देखा उनके होश ही उड़ गए। सभी यात्रियों के कंकाल सीट बेल्ट के साथ बंधे हुए थे। फिर वह कॉकपिट की और गए तो देखा की पायलट का कंकाल भी सीट से बंधा हुआ है। अब सवाल यह है की जब पायलट भी मृत है तो विमान लेंड कैसे वहीँ ब्राजील में हुआ। क्या कभी कोई विमान 35 साल बाद भी बिना पायलट के वहीँ वापस आ सकता है ?
विज्ञान के पास आज तक इसका कोई जवाब नहीं है। डाक्टर सेल्सों एटीलो पेरानॉर्मल रिसर्चर का कहना है, विमान एक ‘टाइम रैप’ में फंस कर रह गया, एक अवधि के बाद रैप से मुक्त होकर वापस आ गया ।
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, ईश्वर की अद्भुत लीला के चलते जो कुछ हो जाए वो थोड़ा है. यह तो ”डाक्टर सेल्सों एटीलो पेरानॉर्मल रिसर्चर का कहना है, विमान एक ‘टाइम रैप’ में फंस कर रह गया, एक अवधि के बाद रैप से मुक्त होकर वापस आ गया ।” यह तो ठीक उसी तरह है, जैसे मनुष्य ने कलें बनाईं और खुद उन्हीं कलों के जाल में फंस गया. कलयुग को टालते-टालते कलयुग को तो ले ही आया, खुद भी कल बनकर गया. अत्यंत शोधपूर्वक लिखी अत्यंत समसामयिक, संतुलित, सटीक व सार्थक रचना के लिए बधाई.