कविता

अनबूझा

संतप्त हैं, पर तृप्त हैं
है क्षेम, न अभिशप्त हैं
हम हैं मनु, हैं मनस्वी
कई तप किये, हैं तपस्वी
कुछ के लिए वरदान हैं
कईयों के हम अभिमान हैं
मीरा भी हम, शिव भी हुए
अमृत बाँटे, हलाहल पिये
हिमवान से हैं हम शीतल
कभी पावस वृष्टि से सजल
अग्नि से ज़्यादा ही ज्वलंत
कालांत भी न जिसका अंत
दिनकर सा है तेज भी
व्याधि सा निस्तेज भी
सुलझा तो है, पर उलझा भी
कुछ सूझा भी, अनबूझा भी
हर परीक्षा से गुज़र कर
जल जल कर, तप कर
हम कनक बने, कुंदन बने
सब दुःख सदा हंसकर सहे
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी